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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री मॉर्लेने[१]भी थोड़ी-बहुत आनाकानी करनेके बाद उसे स्वीकार कर लिया। और राजाओं आदिको यात्रा आदिके लिए अनुमतिपत्र मिलेगा, श्री स्मट्सके ऐसा कहनेपर लॉर्ड एलगिन तथा श्री मॉर्लेने सन्तोष प्रकट किया। यह बात जिस हद तक ब्रिटिश राज्यके लिए अशोभनीय है, उसी हद तक भारतीय समाजपर लांछन लगानेवाली भी है। ब्रिटिश राज्यकर्तागण हमें इतना ओछा और नासमझ मानते हैं कि वे सोचते हैं कि काफिर जिस तरह चिड़ियों और पिनोंसे खुश हो जाते हैं हम भी उसी प्रकार तुच्छ चीजें पाकर खुश होकर बैठ जायेंगे। जिन राज्यकर्ताओंके मनमें ऐसा निकृष्ट विचार था उन्हें लाचार होकर जेलमें दो सौ भारतीयोंको देखकर अपना विचार बदलना पड़ा। यह सत्यकी खूबी है। यह भारतीय समाजको समझना चाहिए। इसी "नीली पुस्तिका" में हम यह भी देखते हैं कि चीनी दूतने अँगुलियोंकी बात उठाई थी परन्तु चीनी संघकी एक अर्जीपर वह बात उन्हें वापस लेनी पड़ी थी। और चीनी दूतको श्री एडवर्ड ग्रेसे कहना पड़ा था कि वह संघर्ष कानूनको लेकर था [ केवल अँगुलियोंके निशानोंको लेकर नहीं ]। इतनी जबर्दस्त कोशिश करनेके बाद प्राप्त विजयको भारतीय समाज अशोभनीय कदम उठाकर अथवा नासमझीसे फेंक नहीं देगा, ऐसी हम आशा करते हैं। इस "नीली पुस्तिका" के आवश्यक अंशका अनुवाद समय मिलनेपर हम अपने पाठकोंकी सेवामें रखेंगे, ताकि हमारे अन्तरमें जो चित्र अंकित है उसे वे भी देख सकें। इस बीच प्रार्थना है कि संघर्ष बहुत-कुछ शेष है, इसे समझ लें। हमें तीन महीनेकी अवधि केवल अपनी तैयारी पूरी करने और अपने हथियारोंपर सान चढ़ानेके लिए मिली है। यदि असावधानीसे ऐसा सोचा गया कि हम फिर वही संघर्ष नहीं कर सकते जिसे किया जा चुका है, तो हम जीती बाजी हार जायेंगे और हाथ मलते रह जायेंगे। भारतके सभी हितैषियोंको बार-बार इसपर विचार करना चाहिए। उन्हें अपना धैर्य, सहनशीलता, उदारता, उद्योग आदि सभी गुण छोड़ नहीं देने हैं।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन,२९-२-१९०८

५१. रिचकी कद्र[२]

श्री रिचके बारेमें अब जरा भी समय नहीं खोना चाहिए। उन्होंने अमूल्य सेवा की है। उनके प्रति कौम अपना कर्त्तव्य भुला देगी तो हम उसे महापाप समझेंगे। जो लगन और एकनिष्ठता श्री रिचने दिखाई है वैसी लगन और निष्ठाके भारतीय भी विरले मिलते हैं, फिर गोरे तो मिलेंगे ही कैसे? हम उम्मीद करते हैं कि गरीब और अमीर अपनी-अपनी शक्तिके अनुसार चन्दा भेज देंगे। हम प्रत्येकका नाम प्रकाशित करेंगे। किसीको एक-दूसरेकी देखा-देखी नहीं करनी है। कौन पहल करेगा, यह विचार नहीं करना है। इस प्रकारके कामोंमें पहल करनेके लिए सभीको तैयार रहना चाहिए। इन दिनों श्री रिचकी ओरसे आने-

 
  1. जॉन मॉर्ले (१८३८-१९२३); इंग्लैंडके राजनयिक, लेखक और दार्शनिक; आयलैंडको स्वराज्य देनेके उत्साही समर्थक; ग्लैड्स्टनके मंत्री-मण्डलमें आयलैंड-मंत्री; भारत-मंत्री, १९०५-१०; १९०८ में ब्लैकबर्नके वाइकाउंट मॉर्ले (लॉर्ड मॉर्ले) और लॉर्ड सभाके सदस्य बने; बादमें भारतीय शासनमें प्रातिनिधिक प्रणालीका सूत्रपात करनेके प्रयत्न किये। ट्रान्सवाल वासी भारतीयोंके शिष्टमण्डलकी उनके साथ भेंटकी रिपोर्टके लिए देखिए खण्ड ६, पृष्ठ २१९-३१।
  2. देखिए "रिचका महान कार्य", पृष्ठ ६३ और "रिचके लिए चन्दा", पृष्ठ ८६।