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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। प्रायः ९५ प्रतिशत भारतीय दस अँगुलियोंके निशान दे चुके हैं। केवल पाँच प्रतिशतने अँगूठेकी छाप दी होगी। सच्ची बहादुरीमें सज्जनता और सीधापन सदैव होता है। यह देखनेमें आता है कि जबतक अपना जोर दिखानेका कोई कारण नहीं हो तबतक अत्यन्त निर्भयतासे रहनेवाले मनुष्य पूरी तरह शान्त और दीन जान पड़ते हैं। सुप्रसिद्ध जनरल गॉर्डन[१] सामान्यतः मनुष्योंके सम्पर्कमें आनेपर सदा बकरीके समान नम्र, दयालु और सरल दिखाई देता था। उसमें उद्दण्डता बिलकुल नहीं थी। बच्चे भी उससे बड़ी स्वच्छन्दताके साथ बातें कर सकते थे। वही व्यक्ति जब अपना अथवा अपने राष्ट्रका स्वाभिमान खण्डित होता देखता था तब सिंहकी तरह गरज उठता था।

अँगुलियोंके निशानकी कथा

अब भी मुझे अँगुलियोंकी छापके सम्बन्धमें लिखते ही रहना पड़ता है। इसलिए मैं स्वयं कौमपर लज्जित हूँ। यह बात इतनी सीधी है कि इसके सम्बन्धमें अभीतक चर्चा चलते रहना अजीब-सा लगता है। परन्तु स्वर्गीय प्रोफेसर मैक्समूलर कह गये हैं कि जबतक सामनेवाले व्यक्तिपर सत्य की छाप नहीं पड़ती तबतक वही बात दोहरा दोहराकर अलग-अलग तरह से कहनेमें कुछ भी दोष नहीं है। इतना ही नहीं, ऐसा करना आवश्यक है। फिर हम लोगों में से कुछ विघ्न-संतोषी व्यक्ति कौममें फूट देखना चाहते हैं। उन लोगोंकी दलीलोंका बार-बार खण्डन करके साफ दिलवाले परन्तु भोले भारतीयोंके मनको स्थिर रखनेके लिए जो विचार हमें सूझें, उन्हें बताना आवश्यक है। दस अँगुलियाँ कहें या अठारह, वे सारे दक्षिण आफ्रिकामें लागू होकर रहेंगी, ऐसा लक्षण मैं देख रहा हूँ। और यदि ऐसा हुआ तो घबरानेकी कोई बात नहीं है। ट्रान्सवालमें प्रवासी अधिनियम पहली जनवरीसे लागू है। वह अबतक भारतीयोंके खिलाफ अमलमें नहीं लाया जा सका है; क्योंकि उनका संघर्ष तो पंजीयनके ही खिलाफ था। इस कानूनके अन्तर्गत चार प्रकारके पास लेने पड़ते हैं।

ट्रान्सवाल छोड़कर जानेवाला व्यक्ति, जो पुराना निवासी होनेके कारण ट्रान्सवालमें रहने का अधिकारी है, लेकिन यूरोपीय भाषाका जानकार न होनेके कारण लौटते समय जिसको अपना अधिकार साबित करनमें कठिनाई उपस्थित होनेकी सम्भावना है, उसके लिए धाराके अनुसार पास ले जानेकी व्यवस्था की गई है। भारतीयोंके लिए इस प्रकारके पासकी आवश्यकता क्वचित् ही होगी। क्योंकि उनके पास तो पंजीयन प्रमाणपत्र होते हैं। लेकिन इस प्रकारके पासों की आवश्यकता गोरे, यहूदी और मजदूरवर्गके अन्य गोरोंके लिए है, क्योंकि उन्हें अंग्रेजी भाषाका ज्ञान न हो और कुछके पास २० पौंड नकद न हो, ऐसा हो सकता है। इस प्रमाणपत्र की एक ओर व्यक्तिका नाम और पता होता है और दूसरी ओर उसकी दसों अँगुलियोंका निशान होता है। अर्थात् इस समय भारतीयोंको जैसा करना पड़ता है यह उसीके अनुसार है। अन्तर इतना ही है कि भारतीयोंको तो दस अँगुलियाँ केवल आवेदनपत्रमें देनी पड़ती हैं, पासमें नहीं। उपर्युक्त पासमें तो दसों अँगुलियाँ निहित हैं ही और वह पास जगह-जगहपर दिखाना पड़ता है।

 
  1. चार्ल्स जॉर्ज गॉर्डन (१८३३-८५) अंग्रेज सैनिक व प्रशासक; क्रीमियाकी लड़ाईमें भाग लिया और बादमें चीन तथा मित्रमें अपने दायित्वोंको बड़ी खूबीसे निभाया; अन्तमें सूडानके गवर्नर-जनरलके रूपमें मेहदीकी सेनाके विरुद्ध खार्तूमका बचाव करते समय वीर-गतिको प्राप्त हुए। चीनमें अच्छा काम करनेके कारण उन्हें "चीनी गॉर्डन" भी कहा जाता था।