पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/१४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०५
जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

दूसरा पास उसी कानूनके अन्तर्गत उस व्यक्तिके लिए है जो पहली ही बार प्रवेश चाहता है। यह प्रायः यहूदियोंपर लागू होता है, क्योंकि उन्हें फोक्सरस्टके निकट आनन-फानन परीक्षा आदिकी सुविधा नहीं है। ऐसे लोगोंके लिए बन्दरगाहोंपर या विलायतमें ही पास निकलवानेकी सुविधा कर दी गई है। उस पासमें उपर्युक्त पासकी तरह ही सभी अँगुलियाँ देनी पड़ती हैं।

तीसरा पास सबके लिए सीमित अवधिका अनुमतिपत्र देनेके बारेमें है। उसमें भी दसों अँगुलियाँ रहती हैं।

चौथा पास उन साक्षियोंके लिए है, जिन्हें ट्रान्सवालमें दाखिल कराना हो, लेकिन जो परीक्षा नहीं दे सकते। उसमें भी दसों अँगुलियाँ देनी पड़ती हैं।

इस प्रकार चार किस्मके पास हैं, जिनमें से दो तो ज्यादातर गोरोंपर ही लागू होते हैं। उन पासोंमें दस अँगुलियाँ रखी गई हैं। तो फिर अँगुलियाँ लेनेकी इस रूढ़िका विरोध भारतीय कौम कैसे कर सकती है? दूसरी बात यह देखनेकी है कि इस धाराका विरोध गोरे बिलकुल नहीं करते। इसका कारण समझना चाहिए। गोरे मुक्त हैं, स्वतन्त्र हैं। इसलिए व्यर्थमें डर नहीं जाते। और जहाँ वास्तवमें अपमान नहीं है, वहाँ अपमान देखते नहीं है। और इसी कारण उन्हें यह भी महसूस नहीं होता कि दस अँगुलियाँ देना कोई बुरी बात है। वास्तविकता यह है कि शिनाख्त करनेके और धोखाधड़ी रोकनेके लिए, दस अँगुलियोंवाला नियम सुन्दर, सरल और शास्त्रीय है। वह पहले कैदियोंपर लागू किया गया, यह बात सही है। और इसी कारण जब भारतीयोंपर खास दबाव देकर उसे लागू करनेकी बात सामने आई तब हमने उसका उचित विरोध किया। परन्तु अब विरोध करनेका कोई कारण नहीं रहता। बहुत-से नये सुधार इन कैदियोंकी मारफत प्रचलित किये गये हैं, जैसे कि चेचकका टीका। जब चेचकके टीकेकी खोज श्री जेनरने की तब उसका सबसे पहला प्रयोग कैदियोंपर किया गया। ऐसा जब प्रतीत हुआ कि वह प्रयोग सफल हो गया तब दूसरोंपर उसे लागू किया गया। कोई यह नहीं कह पाया कि इस कारण स्वतन्त्र मनुष्योंका अपमान हुआ है।

यदि कोई यह प्रश्न करे कि ये सारी दलीलें प्रारम्भमें क्यों नहीं दी गईं तो इसका उत्तर भी बहुत सरल है। पहले जो अँगुलियाँ थीं वे गुलामी-कानूनसे जुड़ी हुई थीं। और इस कारण से वे हमारे लिए गुलामीके एक चिह्नके रूपमें थीं। और इसी सबब अँगुलियोंके सम्बन्धमें जो-कुछ हीनता से भरी हुई बात थी उसे स्पष्ट करना कर्त्तव्य था। अन्ततोगत्वा वे दाखिल होंगी ही, और उसमें वैज्ञानिक दृष्टिसे लाभ है, इत्यादि दलीलें दे देकर भारतीय कौमको दासताके जालमें जकड़नेमें सहायता करनेका उद्देश्य इस साप्ताहिकका कभी नहीं रहा। इसलिए अमुक परिस्थितिमें अँगुलियाँ देनी पड़ेंगी, अथवा उनके देनेमें दोष नहीं है, ये दलीलें उस समय देनेकी कोई आवश्यकता नहीं थी। वह समय कानूनके खिलाफ मामला जोरदार बनाने का था। उस समय मेरे द्वारा भेजे गये संवादपत्रोंमें अथवा इस समाचारपत्रमें अन्यत्र जितनी दलीलें दी गईं वे सबकी-सब उचित थीं। और वे उसी प्रकारकी परिस्थितिमें आज भी अक्षरशः लागू हो सकती हैं। संसारके किसी भी भागमें अनिवार्य रूपसे केवल भारतीय कौमपर उनकी चमड़ीको दागनेके लिए दस अँगुलियाँ अथवा एक अँगूठा भी दाखिल किया गया, तो यही अखबार फिरसे झण्डा उठायेगा। और जो दलीलें दी जा चुकी हैं उन्हें फिर