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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मिलना था। क्योंकि दस अँगुलियाँ दबावमें आकर नहीं दी हैं। विलायतमें जो मदद मिली वह हमारे स्वेच्छया पंजीयनके प्रस्तावके बलपर ही। जब सरकारने हाथ बढ़ाया अगर तब मैंने समय गँवाया होता तो हम विलायतकी सहानुभूतिको खो बैठते। यह स्मरण रहे कि समझौतेके दूसरे दिन बुजुर्ग सेठोंको जेलमें आना था। इसलिए मेरा दिल रो रहा था। यदि टाला जा सके तो इस अवसरको टालना मैं अपना कर्त्तव्य समझता था। अर्थात् यह कहना बिलकुल अनुचित है कि उतावली की गई।

फिर मेरे बाद जो लोग जेलमें आये उनके सन्देशोंमें घबराहट थी। उनका कहना था कि लोगोंकी हिम्मत टूटने लगी है। फेरीवाले फेरी करने नहीं जाते; और मुझे जितनी जल्दी बन पड़े समझौता करनेका प्रयत्न करना चाहिए। जो लोग जेलमें आये हुए थे वे थोड़े दिनों बाद घबराने लगे थे। और कुछ कहा करते थे कि वे दुबारा नहीं आयेंगे। जब मैं जनरल स्मट्ससे मिला तब उन्होंने भी मुझसे यही कहा कि कई भारतीय कानून मान लेनेको तैयार हैं, जिनकी तुम्हें कोई खबर नहीं है। कई व्यक्ति उनके पास अलग-अलग अर्जी भेज चुके थे, उनमें से मैं कुछके नाम भी जानता हूँ। जो व्यक्ति सोलह महीनोंसे इस संघर्षमें पूरी तरह गुँथा हुआ है वह इन सारी बातोंको नजर अन्दाज नहीं कर सकता। फिर भी यह सम्भव है कि दस अँगुलियाँ देनेमें स्वयं मुझे कुछ आपत्ति दीखती अथवा ट्रान्सवालके लोग बहुत नाराज होंगे ऐसा मुझे पता चलता, तो मेरे लिए कुछ-न-कुछ सोचनेकी बात होती। परन्तु मेरी जानकारीके अनुसार जिस प्रकार स्वेच्छया पंजीयन करानेमें आपत्ति नहीं थी उसी प्रकार स्वेच्छासे अँगुलियाँ देनेमें भी नहीं थी। और मैं जानता था कि ट्रान्सवालमें इसके बारेमें समझदार लोगोंका विरोध नहीं है; क्योंकि उनको पता था कि अँगुलियाँ देना स्वतः आपत्तिजनक बात नहीं थी, परन्तु जिस तरीकेसे कानूनके अन्तर्गत वे माँगी जाती थीं उसपर आपत्ति थी। वह परिस्थिति दूर होनेपर अँगुलियाँ देना अपने-आप निर्दोष बन गया।

क्या मैं जेलमें घबरा गया?

इस प्रकारका आक्षेप करनेवाले मुझे नहीं पहचानते। जेलमें यदि कोई भी मनुष्य अत्यन्त आनन्दसे रहता था तो वह मैं ही था। और किसीको जेलमें मेरे बराबर सन्तोष हो, ऐसा मुझे नहीं दिखा। और अब भी अवसर आनेपर मैं जेलका सहर्ष स्वागत करूँगा, मेरे मनकी ऐसी स्थिति है। जेल भुगतनेके सम्बन्धमें जो व्यक्ति इस हद तक दृढ़ता रखता हो उसे तो समझौतेके बारेमें विचार करनेकी जरूरत ही न पड़ती।

अँगुलियोंमें भेद क्या?

बहुत-से लोग यह पूछते हैं कि "मैं जो अँगुलियाँ देनेमें लाभकी बात कहता हूँ सो क्या है?" इसे थोड़ा-बहुत समझाऊँगा।

१. अँगुलियाँ देनेपर हम समझदार साबित हुए और हमने यह दिखा दिया कि लड़ाई अँगुलियोंके लिए नहीं थी।

२. ऐसे मामलोंमें सरकारका मन रखना बुद्धिमानीकी बात जान पड़ी, और अनुभवके बाद आज भी वैसी ही जान पड़ रही है।

३. अगर इस समय न दी होतीं तो आगे चलकर अनिवार्य रूपसे देनी पड़तीं। देते या नहीं, सो बात अलग है।