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विशेष विचार

४. प्रवासी कानूनमें जगह-जगह गोरोंके लिए भी दस अँगुलियोंकी व्यवस्था है।

५. स्वयं मैंने दीं, यह अपने लिए गौरवकी बात मानता हूँ। और मैंने देकर अपनी कसमका पालन किया, पठानोंकी मारसे नहीं डरा हूँ, यह दिखा दिया तथा इस लांछनसे बच गया कि मैंने अपने लिए दस अँगुलियोंसे मुक्त रहनेका प्रबन्ध किया था।

६. इसमें बहुत-सारे गरीबोंके हितका संरक्षण हुआ है।

७. इससे भारतीय कौमका सम्मान बहुत बढ़ा है, और कई गोरोंका कौमके साथ पक्का भाईचारा हो गया है।

चीनी लोग कैसे छूटे?

कुछका कहना है कि चीनी लोग लड़े, इसलिए एक अँगूठा देकर छूट गये। यह गलत-फहमी है। उनको छुड़ानेवाला ब्रिटिश भारतीय संघ है। इसमें मध्यस्थ मैं था। और अपनी चारपाईसे श्री स्मट्सको सन्देशा मैंने भेजा था। इसलिए चीनियोंके अँगूठा देनेकी जो बात तय हुई वह समझौतेका भाग था। चीनियोंके समान हम भी कर सकते थे। परन्तु हठ करके चीनी लोग सरकारकी नजरोंमें आबरू खो बैठे हैं, और हम उसे रख सके हैं। यही नहीं, ऐसी स्थिति आ पहुँची है कि भारतीय कौमके बारेमें विचार करते समय सरकार चीनियोंको किनारे डाल सकती है। ऐसा करना हमारा काम नहीं है। समझदार चीनी यह सब जानते हैं। इसीलिए उन लोगोंने दस अँगुलियाँ दी हैं और आगे भी देंगे। श्री क्विन दे ही चुके हैं।

स्वेच्छया बनाम अनिवार्य

एक देशसेवकने इस सम्बन्धमें एक बड़ा अच्छा किस्सा मुसलमान भाइयोंको समझानेके विचारसे लिख भेजा है। कुरान शरीफके मुताबिक खुदाका नाम लेकर काटा गया मांस मुसलमानोंके लिए हलाल होता है। दूसरी तरहसे काटा हुआ हराम होता है। इसी प्रकार स्वेच्छया अँगुलियाँ देना हलाल है, उनका अनिवार्य दिया जाना हराम था।

क्या शिक्षित लोग लाभमें रहे?

यह प्रश्न उठाना बड़ी नासमझी है। जो लोग सही-सही ढंगसे सुशिक्षित हैं वे तो सदैव लाभमें ही हैं। यदि ऐसा न हो तो शिक्षणकी आवश्यकता नहीं रहती। अशिक्षितोंको यह सोचना चाहिए कि शिक्षित लोग ऊँचे उठें तो उसमें सारी कौमका लाभ है। फिर चाहे शिक्षित लोग चाँदी साबित हों या राँगा। फिर वे लोग लाभमें रहे, इसका क्या मतलब? अँगुलियाँ देने-न-देनेमें लाभ पाने की कौन-सी बात है? लिखा-पढ़ा हुआ व्यक्ति हस्ताक्षर करेगा और अनपढ़ छाप देगा---इसमें किसने क्या लाभ पाया? दरअसल बात यह है कि हमारा काम अपने अधिकारोंको यथासम्भव सुरक्षित रखना है। व्यर्थका द्वेष करना हमारी क्षुद्रता और पुरुषार्थहीनता है। कुएँमें होगा तभी हौजमें आयेगा, ऐसा समझकर शिक्षणको प्रोत्साहन देना हमारा काम है। ऐसा शिक्षण हमें प्राप्त हो, हम इस प्रकारकी इच्छा करें। शिक्षणका मूल्य समझकर उसका प्रसार करना उचित है।

कानूनका रहस्य

कानूनमें सचमुच कौन-सा दोष है? यदि कोई ऐसा प्रश्न करे तो सर्वप्रथम मुझे यह कहना होगा कि वह भेद ऐसा नहीं है जो सहज ही बताया जा सके। हवाका परिणाम हमारी नजरमें आता है, परन्तु हम हवाको नहीं देख पाते। फूलकी सुगन्ध आती है, परन्तु