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५५. पत्र: 'इंडियन ओपिनियन' को[१]

जोहानिसबर्ग,
मार्च ३,१९०८

सम्पादक
'इंडियन ओपिनियन'
महोदय,

भारतीय समाजकी इज्जत रह गई, जय प्राप्त हुई, संसारके हरएक राष्ट्रने भारतीयोंके सत्याग्रहका बखान किया और समाजकी प्रतिष्ठा बढ़ी। संघर्षके प्रारम्भमें ट्रान्सवाल और दक्षिण अफ्रिकाकी गोरी जाति भारतीयोंपर हँसती थी। किन्तु जब बातने रंग पकड़ा, सचमुच, तब ट्रान्सवाल और दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले सत्यप्रिय और पवित्र अन्तःकरणवाले गोरे मदद देनेके लिए आगे आये। विलायतमें बहादुर रिच अपनी प्यारी पत्नीकी, जो बीमार होकर बिस्तरपर पड़ी थीं, अथवा बाल-बच्चोंकी परवाह किये बिना रात-दिन, सख्त कैदकी सजावाले कैदीकी भाँति जुटे रहे। उन्होंने सारे विलायतमें पुकार की और उनकी पुकारकी ज्वालासे वहाँ रहनेवाले अमीर-उमरावों, छोटे-बड़े सभीके हृदयमें लपटें उठीं और उनसे ट्रान्सवाल सरकारके मन्त्रियोंके हृदयमें भी चिनगारियाँ पैदा हुई। परिणामस्वरूप भारतीय बन्दी मुक्त किये गये। भारतीयोंकी माँग स्वीकार हुई और ईश्वरने समाजकी लाज रखी।

भारतीय समाजने जैसी फतह पाई है, दुनियामें वैसी यह पहली ही फतह है। इस फतहको जितना कीमती माना जाये, उतना ही कम है। इस विजयपर प्रत्येक भारतीयको अभिमान होना चाहिए। सत्यका पल्ला पकड़े रहनेसे भगवान और भगवानके भक्त सदा आपकी मददके लिए खड़े ही रहेंगे। ईश्वरीय मददके इस प्रमाणकी याद अपनी सन्तानोंके अन्त:- करणमें हमेशाके लिए अंकित कर रखनेके विचारसे हरएक भारतीय 'संघ-भवन' के निर्माणकी आवश्यकताको महसूस करेगा। जिसकी नसोंमें भारतीय रक्त बहता होगा, वह हर तरहसे उस कार्यकी प्रगतिके लिए हार्दिक सहायता करेगा। हर गरीब और धनवान इस भवनको भारतीय कौमकी कीर्तिका स्तम्भ समझकर जान-मालसे मदद करे, यही वांछनीय है।

निश्चय हुआ कि यह भवन जोहानिसबर्ग में बनाया जाये; उसके लिए थोड़े ही दिनोंमें चन्दा इकट्ठा करना शुरू हो जायेगा। ट्रान्सवालमें रहनेवाले प्रत्येक भारतीयको १० शिलिंग अनिवार्य रूपसे देना है। ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षके दस्तखतसे उन्हें उसकी रसीद दी जायेगी। व्यापारी, जमीन-जायदादके मालिक और अच्छी स्थितिके अन्य भारतीय यथासामर्थ्य १० शिलिंगसे अधिक इस निधिमें दें। इस विषयमें यदि कोई भारतीयोंको उलटी पट्टी पढ़ायेगा या गलत हलचलें करेगा तो वह देश और सत्यका दुश्मन गिना जायेगा। प्रत्येक भारतीय बन्धुको मेरी विशेष सलाह है कि वह ऐसे लोगोंके जालमें न फँसे, भगवानको साक्षी रखकर और सत्यको जानकर तन, मन तथा धनसे मदद करनेके लिए तत्पर रहे। आशा है कि बड़े आदमी इस काममें कमसे कम ५० से १०० पौंड तक मदद देंगे। जो कोई भाई पुराने कानूनके मुताबिक

 
  1. पत्रका विषय देखते ऐसा लगता है कि इस पत्रका मसविदा गांधीजीने ही तैयार किया था।
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