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करते हुए जो बातें पूछी जाती हैं, उनकी जानकारी लिखी गई थी--जैसे अंग्रेजी, वतनी और डच भाषाके व्यापार सम्बन्धी शब्द, जोहानिसबर्गका संक्षिप्त वर्णन, भारतीय बस्तीकी जानकारी, पोस्ट ऑफिस, मजिस्ट्रेटकी अदालत, जोहानिसबर्गके रेलवे स्टेशन आदिका पता। उन लोगोंने बताया कि १३ अन्य व्यक्ति भी उसी प्रकार जोहानिसबर्गमें दाखिल हुए हैं।

एक चीनीने अनुमतिपत्रके लिए अरजी दी। उसकी जाँचके दौरानमें मालूम हुआ कि वह व्यक्ति तीन बार अलग-अलग नामोंसे ट्रान्सवालमें दाखिल हुआ था और बदचलनीके अपराधमें उसे तीन बार सजा दी गई थी और तीन बार ट्रान्सवालसे बाहर निकाला गया था।

१९०६के अगस्तमें अरबी ईसा नामक व्यक्तिने एक कैदीको छुड़वानेके लिए कोमाटीपूर्टमें रिश्वत देनेकी कोशिश की और इसलिए उसे ६ महीनेकी सख्त सजा दी गई।

१९०६ के अगस्तमें ही डाह्याभाई शंकरभाई नामक भारतीयने सारजेंट मैकडुगलसे कहा कि लोगोंको जाली दाखिला दिलवानेसे मैं आपको प्रति मास सौ-डेढ़ सौ पौंडकी आमदनी करा दे सकता हूँ।

डेलागोआ-बेके ब्रिटिश वाणिज्यदूतका पोर्तुगीज जासूस १९०६के दिसम्बर में लिखता है कि 'लाला' नामके व्यक्तिने ट्रान्सवालमें दो लड़कों को दाखिल करनेके बदले मुझे १७ पौंडकी रिश्वत देनी चाही थी।

१९०७ के जनवरी मासमें हे यी-यांग नामक चीनी अनुमतिपत्रपर से अँगूठेका निशान मिटाकर उसपर नई छाप लगानेके अपराधमें पकड़ा गया था। कोर्टमें उसने शपथपूर्वक कहा कि मैंने अनुमतिपत्र डेलागोआ-बेसे ४० पौंड देकर खरीदा है; और अन्य १८ चीनियोंने भी इसी तरह किया है।

मई १९०७ में मोरार लाला नामक एक व्यक्ति जिसने अनुमतिपत्रके लिए दरखास्त दी थी, गिरफ्तार किया गया। सख्तीके साथ जाँच किये जानेपर वह फूटकर रो पड़ा और उसने स्वीकार किया कि उसका नाम जिना लाला है; और मोरार लाला उसका भाई था जो देश लौटकर मर चुका था।

१९०७ के मार्चमें चार भारतीय ट्रान्सवालमें दाखिल हुए। उनके अँगूठोंकी छाप अनुमतिपत्रपर के अँगूठोंकी छापसे मिलती थी। जाँच करनेपर यह मालूम हुआ कि दफ्तरमें से उनकी नकलें चुरा ली गई थीं और उनपर लगी हुई अँगूठेकी छापको मिटाकर उन्होंने अपने अँगूठोंकी छाप लगा दी थी। अभी इन आदमियोंका पता नहीं चला है। पुलिस जाँच कर रही है।

और भी ऐसे मामलोंका जिक्र किया गया है जो इस प्रकारके जाली अनुमतिपत्रोंके बलपर दाखिल हुए और यह बादमें मालूम पड़ा; किन्तु पुलिस अभीतक जिनका पता नहीं लगा पाई है।

दुलभ और जीवन गोविन्द नामक भारतीयोंने १९०७ के मई महीनेमें बताया कि डेलागोआ-बेके एक भारतीय तथा एक गोरेके पाससे उन्होंने प्रति अनुमतिपत्र २२ पौंड देकर अनुमतिपत्र खरीदे हैं।