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आसमानी किताबसे

नये कानूनको मान चुके हैं और जो उपनिवेशमें हैं केवल वे ही ट्रान्सवालमें रह सकते हैं। इसके सिवा खण्ड ६ के मुताबिक उन भारतीयोंको देशसे निकालनेका हक दे दिया गया है जो कानूनको मानने से इनकार करते हैं। ऐसा करनेकी आवश्यकता प्रतीत हुई है, क्योंकि एशियाई आबादीने कानून न माननेकी सार्वजनिक रूपसे घोषणा की है। इसलिए सरकारका इरादा यह है कि अन्ततोगत्वा यदि अन्य लोगोंको नहीं, तो फसाद करनेवाले नेताओंको देशके बाहर कर दिया जाये। सरकार उन्हें कैदमें रखनेके खर्च और कैदमें रखनेके कारण उत्पन्न अड़चनोंसे बचना चाहती है। सरकार इस अधिकारको बहुत सोच-विचार कर काममें लायेगी।

लॉर्ड एलगिनका श्री मॉर्लेको पत्र

जगह-जगह दिखाई देता है कि लॉर्ड एलगिनने भारतीयोंको कुछ नहीं गिना और उन्हें तेजहीन, कायर और गुलामीके योग्य माना है। दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिका पत्र तथा भारतीयोंकी अरजी श्री मॉर्लेको भेजते हुए लॉर्ड एलगिन इस तरह लिखते हैं:[१]

लॉर्ड एलगिन प्रवासी कानूनके खण्ड २ (४) और खण्ड ६ (ग) के विषयमें श्री मॉर्लेके विचार जानना चाहते हैं। खण्ड २ (४) का हेतु भारतीय अथवा अन्य नये एशियाइयोंको ट्रान्सवालमें दाखिल होनेसे रोकना है। श्री मॉर्ले जानते हैं कि बड़ी सरकारने हमेशा उन एशियाइयोंके अधिकारोंकी रक्षा करनेकी व्यवस्था की है जो उपनिवेशमें रहते हैं; और उसने अन्य उपनिवेशोंमें जिस प्रकारका प्रवासी कानून बना है वैसा कानून बनानेसे इनकार नहीं किया। श्री लिटिलटनने जो कुछ पहले लिखा है लॉर्ड एलगिन श्री मॉर्लेका ध्यान उसकी ओर आकर्षित करते हैं; और कहते हैं कि वे इसलिए उक्त खण्ड [ २ (४) ] के विषयमें कोई आपत्ति पेश नहीं करना चाहते।[२] खण्ड ६ (ग) का विचार एशियाई कानूनके सम्बन्धमें करना आवश्यक है। उस कानूनकी रूसे जो एशियाई पंजीयन न करायें उन्हें उपनिवेश छोड़नेका हुक्म दिया जा सकता है और यदि कोई उस हुक्मकी अवज्ञा करे, तो ऐसे एशियाईको कारावास दिया जा सकता है। इस खण्डका हेतु इस प्रकारके एशियाईको देशके बाहर करनेका अधिकार प्राप्त करना है। यद्यपि उपनिवेश सचिवको लगता है कि ऐसे अधिकारका खुलकर उपयोग करना ठीक नहीं है, तो भी बड़ी सरकारने जिस एशियाई कानूनको स्वीकार किया है और भारतीय समाज जिसके बहुत विरोधमें दिखाई पड़ता है, उस कानूनपर अमल करनेके लिए उपनिवेशको जैसी सत्ता चाहिए वैसी सत्ता देनेके बारेमें बड़ी सरकार 'ना' नहीं कह सकती। इसलिए श्री मॉर्लेको इसपर जो कुछ कहना है, उसे समझ लेनेके बाद लॉर्ड एलगिनका इरादा देश-निकाला देनेकी शर्तको भी बरकरार रखनेका है। खण्ड ६ (ख) में भी, जिसका सम्बन्ध भारतीय समाजके

 
  1. उद्धृत पत्रका गुजरातीसे किया गया हिन्दी अनुवाद ७-३-१९०८ के इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित मूल अंग्रेजी पत्रसे मिला लिया गया है।
  2. मूल अंग्रेजीमें कहा गया है, "चूँकि उपनिवेशीय मनोभावनाकी दशाको देखते हुए यह स्वयं ब्रिटिश भारतीयोंके हितमें है कि भविष्यमें प्रवेशपर प्रतिबन्ध लगाया जाये"।