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आसमानी किताबसे

कानूनके विषयमें सरकारने जो कुछ लिखा था, उससे भी अधिक सख्त बातें भारतीयोंके बारेमें लिखी गई। तब फिर भारतीयोंके विषयमें राष्ट्रपति क्रूगरके समयमें जो कुछ नहीं हो सका, वह आज कैसे हो सकता है? इसका जवाब ऊपर दिया जा चुका है। भारतीय समाज पंखविहीन है, इसलिए लॉर्ड एलगिनको उसकी क्या परवाह!

श्री मॉर्लेका जवाब [१]

श्री मॉर्लेको अफसोस है कि वे इस कानूनको दूसरे उपनिवेशोंके कानूनों जैसा नहीं मान सकते। दूसरे उपनिवेशोंने शिक्षणके विषयमें जो शर्त रखी है, उस प्रकारकी शर्त रखनेमें आपत्ति नहीं है। किन्तु खण्ड २ (४) में जो शर्त रखी गई है, वैसी किसी भी अन्य कानूनमें नहीं देखी जातीं। इस धाराके मुताबिक जो कानून विशेष परिस्थितियोंकी दृष्टिसे बनाये गये हैं, स्थायी हो जाते हैं। इस तरहकी धाराके कारण यूरोपमें शिक्षित भारतीय भी दाखिल नहीं हो सकते। इसके सिवा जो लोग १९०२ के बाद ट्रान्सवाल निवासीकी तरह अधिकार प्राप्त कर चुके हैं उनपर भी प्रतिबन्ध लग जाता है। किन्तु वह[२] इस बातको समझती है कि बड़ी सरकारको भारतीय हितोंकी परवाह किये बिना निर्णय लेना पड़ेगा। यदि १९०७ के कानूनसे १९०३ के पहलेके हकोंकी रक्षा हो सकती हो, तो प्रवासी कानूनके विषयमें कहने योग्य अधिक कुछ नहीं बचता। पहले के इतिहासको देखते हुए श्री मॉर्ले खण्ड २ और ६ के उपखण्डोंको अंगीकार करते हैं। चूँकि १९०७ के कानूनको स्वीकृति मिल गई है, इसलिए उस कानूनको अमलमें लाने के लिए जो भी अतिरिक्त सत्ता ट्रान्सवालको मिलनी उचित है वह उसे दी जानी चाहिए। किन्तु खण्ड ४[३] के मुताबिक तो चाहे जैसा भारतीय क्यों न हो, उसे हमेशा के लिए बन्धनमें रहना पड़ेगा, अर्थात् अन्य उपनिवेशोंके मुकाबलेमें यह कानून अधिक सख्त हुआ। १९०७ के कानूनके मुताबिक अस्थायी अनुमतिपत्र दिये जा सकते हैं। यह ठीक है। श्री मॉर्ले आशा भी करते हैं कि उस सत्ताका उपयोग जाने-पहेचाने व्यक्तियोंको दाखिल होने देने में किया जायेगा। किन्तु इस विषयमें ट्रान्सवालकी सरकारसे आश्वासन लेना आवश्यक है। इस प्रकारके कानूनका असर भारतमें क्या होगा, सो लॉर्ड एलगिनको बतलाना आवश्यक नहीं है। जब १९०७ का कानून मंजूर किया गया, तब श्री मॉर्लेने यह नहीं सोचा था कि उक्त कानून हमेशा कायम रहेगा। इसलिए श्री मॉर्लेको आशा है कि उपखण्ड ४ के विषयमें लॉर्ड एलगिन ट्रान्सवालकी सरकारको अच्छी तरह समझा देंगे।

टीका

इसके आधारपर लॉर्ड एलगिनने जनरल स्मट्सको लिखा कि यदि राजा-उमरावों आदिको अनुमतिपत्र दिये जायें और विदेशियोंको देश-निकाला देनेके खण्डमें परिवर्तन किया जाये, तो

 
  1. यह लॉर्ड एलगिनके ऊपर दिये गये पत्रका उत्तर है।
  2. भारत सरकार, जिसके इस प्रश्नसे सम्बन्धित मत लॉर्ड एलगिनको लिखे गये पत्रमें सूचनार्थ उद्धृत किये गये हैं।
  3. इसके स्थानपर "२ (४)" होना चाहिए था।