पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/१६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२७
जोहानिसबर्ग की चिठ्ठी

वह भी 'पैसिव रेजिस्टेन्स' जैसे शब्दके अर्थ देनेके सिलसिलेमें, एक तरहसे 'सत्याग्रह' के संघर्षका ही खण्डन हुआ। यह किस प्रकार सहन किया जा सकता है? हमें आशा है कि इसके बाद ये तीनों प्रतिस्पर्धी और दूसरे पाठक विशेष यत्न करके साहसके अन्य काम करके प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगे और उन कामोंकी भी प्रतिष्ठा बढ़ायेंगे।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, ७-३-१९०८

६०. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

पंजीयन

अनुमतिपत्र कार्यालयको घड़ी भरकी फुरसत नहीं है और सब बिना आनाकानीके दसों अँगुलियोंकी छाप दे रहे हैं। यह संख्या चार हजारके ऊपर पहुँच गई है। इसलिए अब आशा की जा सकती है कि थोड़े ही समयमें सब पूरा हो जायेगा।

पठान अब पंजीयन कराने लगे हैं। आज कर सकते हैं तो पहले दिनसे ही ऐसा कर सकते थे। फिर भी उन्होंने अब भी समझदारीसे काम लिया है, इसलिए उनका अभिनन्दन करना चाहिए।

विलायतसे कुछ पत्र

पूरे समझौतेके लन्दनमें प्रकाशित होनेके बाद दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिके नाम बड़ी संख्यामें पत्र और तार आये हैं। इनमें से कुछ श्री रिचने हमें भेजे हैं। उनके उद्धरण देने योग्य हैं; वे यहाँ दिये जा रहे हैं।

सर चार्ल्स ब्रूस[१] लिखते हैं कि जो तार आये हैं उनसे मुझे प्रसन्नता हुई है। भारतीय समाजने जो साहस और संयम दिखाया वह प्रशंसाके योग्य है। इस कालके इतिहासमें ऐसे बिरले ही उदाहरण मिलते हैं।

सर लेपेल ग्रिफिन लिखते हैं कि पंजीयनके विषयमें जो समझौता हुआ है, उसके लिए मैं श्री रिच और अन्य उन सब लोगोंको बधाई देता हूँ जो इसमें सहायक हुए। लॉर्ड सभामें जो चर्चा हुई उससे हमें यह समझ लेना चाहिए कि भारतीय समाजको समानाधिकार मिलनेका प्रश्न अभी जैसाका-तैसा बना हुआ है। जैसे-जैसे समय बीत रहा है, वैसे-वैसे उपनिवेशके लोग यह समझते जा रहे हैं कि भारतीय समाजको अधिकार दिये बिना छुटकारा नहीं है। इसी बीच पूर्व आफ्रिका, युगांडा, बोर्नियो, न्यूगिनी, गियाना, जमैका आदि स्थानोंमें उनका स्वागत किया जा रहा है और वे वहाँ जा सकते हैं।

डॉ० थॉर्नटन[२], जो किसी समय पंजाबमें न्यायाधीश थे, लिखते हैं कि ऐसा सुन्दर परिणाम निकलने का मुख्य कारण यह है कि भारतीय समाजने दृढता और नम्रतासे अनेक बाधाएँ

 
  1. सर चार्ल्स ब्रूस (१८३६-१९२०); मॉरिशसके उपनिवेश-सचिव (१८८२), बादमें गवर्नर (१८९७-१९०४); ब्रिटिश गियानाके लेफ्टिनेंट गवर्नर भी (१८८५-९३); साम्राज्य तथा साम्राज्यीय नीतिले सम्बन्धित अनेक पुस्तकोंके लेखक।
  2. टॉमस हेनरी थॉर्नटन, सी० एस० आई०, (१८३२-१९१३); पंजाब सरकारके प्रधान सचिव (१८६४-७६); भारत सरकारके कार्यवाहक विदेश सचिव (१८७६-७); भारत सम्बन्धी कई पुस्तकोंके लेखक; देखिए खण्ड ६।