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एस्टकोर्टके परवाने

बड़ा सख्त भाषण दिया, लेकिन अदालतपर उसका प्रभाव नहीं पड़ा। इससे प्रकट होता है कि अदालतका इरादा एस्टकोर्टसे भारतीयोंका नामोनिशान मिटा देनेका है। कर्नल ग्रीनके भाषणसे अन्दाज लगाया जा सकता है कि उक्त सज्जन संसदमें भी मदद करेंगे। वे मदद करें अथवा नहीं, भारतीय समाजका कर्तव्य तो साफ दिखाई पड़ रहा है, विलायतमें इसपर बहुत चर्चा होने की जरूरत है। इस मामलेमें बड़ी सरकारको अर्जी भी भेजनी चाहिए। लॉर्ड ऐम्टहिल और लॉर्ड कर्जनके[१] जो भाषण लार्ड-सभामें हुए हैं, और हम जिनका सार गत सप्ताह दे चुके हैं, उनसे जाहिर होता है कि उक्त सज्जन भी ट्रान्सवालके संघर्षके मुद्दे समझ पाये हैं। नेटालके प्रश्नका निपटारा करने में उनके प्रभावका उपयोग हो सकेगा, ऐसा संकेत किया गया है। भारतीय समाजके लिए उचित है कि उसका पूरा लाभ उठाये। और अन्तमें यदि न्याय न मिले तो सत्याग्रह [ का शस्त्र ] धारण करनेका निश्चय करना चाहिए।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, १४-३-१९०८

प्रमाणित किया कि एक यूरोपीय दूकानदार श्री हेलेट भी उनसे मुनीमीका काम लेते हैं और वे उनकी बहियाँ भी बहुत-कुछ इसी ढंगसे रखते हैं। फिर भी निकायने, एकके विरुद्ध पाँच सदस्योंके बहुमतसे, यह निर्णय किया कि छ: महीनेकी सूचनाके बाद श्री पटेलको अपना कारोबार बन्द कर देना होगा।

अपीलकर्ताओंके वकील कर्नल ग्रीनने तब निकायको सम्बोधित किया: "दूकानदार अपने व्यापारके आँकड़े गुजरातीमें लिखते हैं और उनके मुनीम उनकी नकद बिक्री और प्रतिदिनकी कुल बिक्री जोड़कर उनकी बहियाँ लिखते हैं। बहियाँ पूर्ण रूपसे, बल्कि उल्लेखनीय ढंगसे अच्छी तरहसे रखी गई हैं।" उन्होंने आगे कहा हमें सन्तोष है कि जो कच्ची बहियाँ गुजरातीमें रखी जाती हैं वे दूकानदारके हिसाबकी रोजमर्राकी बहियोंका अंग नहीं हैं और हम दो बहुत प्रसिद्ध मुनीमोंकी, जो अपने कार्यमें दक्ष हैं, गवाही सुननेके बाद इस निर्णयपर पहुँचे हैं। हमें और भी सन्तोष इस बातसे है कि गुजरातीकी बहियाँ पिछले परवाना अधिकारीकी विशेष सलाहसे रखी गई हैं। और उसे उनके इन बहियोंके रखनेके ढंगसे सन्तोष था। इन परिस्थितियोंमें मैं खयाल करता हूँ कि यह बहुत ही मुनासिब होगा यदि याचिकायें स्वीकार की जायें। ...

कर्नल ग्रीनने इसके पहले निकायको सम्बोधित करते हुए अन्तमें कहा था, "कानूनका यह मन्शा कभी नहीं है कि इस प्रकारका कोई स्थानिक निकाय ऐसा गन्दा काम करे। और मैं अपनी अन्तरात्माकी शपथ लेकर कहता हूँ कि यदि आप इस प्रार्थनाको अस्वीकार करेंगे, तो मैं सोचता हूँ कि हम सबको ऐसा लगेगा, जैसे हम कीड़े-मकोड़े हों।" स्थानिक निकायने पाँच परवानोंमेंसे दोको शर्तोंके साथ नये किये जानेकी आज्ञा दी।

 
  1. जार्ज नैथेनियल, कर्जन ऑफ केडल्स्टन, प्रथम मार्क्विस (१८५९-१९२५); भारत उप-मन्त्री १८९१-९२; भारतके वाइसराय और गवर्नर जनरल, १८९९-१९०५; १९१५ में एसक्वियके संयुक्त मन्त्रिमण्डलमें शामिल हुए; विदेश मन्त्री, १९१९-२४; ब्रिटिश गवर्नमेंट इन इंडिया (भारतमें ब्रिटिश शासन), प्राब्लेम्स ऑफ दि फार ईस्ट (सुदूर पूर्वकी समस्याएँ) तथा अन्य पुस्तकों के लेखक।