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६८. पत्र: सी० ए० डी आर० लैबिस्टरको

[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च १८, १९०८

श्री सी० ए० डी आर० लैबिस्टर
सॉलिसिटर
डंडी
महोदय,

विषय: बद्री और अन्य लोग तथा वावड़ा ऐंड कं०

इस विषयमें आपने मेहरबानी करके जो तार मुझे फीनिक्स भेजा, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। आपको मालूम ही है कि बद्रीका आम मुख्तारनामा उनकी अनुपस्थितिमें मेरे पास था। मैं सारी स्थिति बद्रीको समझाना चाहता हूँ; इसीलिए मैंने श्री टैथमसे कुछ समयके लिए सम्बद्ध कागज-पत्र माँगे थे। परन्तु साथके पत्रसे आपको मालूम होगा कि श्री टैथमने मुझे आपको लिखनेके लिए कहा है। अतएव क्या आप मेहरबानी करके वे कागजात मुझे भेज देंगे? मैं उन्हें देखकर आपको वापस कर दूँगा।

आपका विश्वस्त,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ४८००) से।

६९. मेरे जेलके अनुभव [२]

आहारमें परिवर्तन

१४ जनवरीको श्री थम्बी नायडू और श्री क्विन आये। परन्तु उससे स्थितिमें कोई बड़ा अन्तर नहीं पड़ा, क्योंकि वे उसे सहन करनेके लिए बिलकुल तैयार थे। लेकिन १८ तारीखको १४ कैदी और आ गये। इनमें से एकको छोड़कर बाकी सब फेरीवाले थे और प्रत्येकको दो-दो पौंड जुर्माने या १४ दिनकी जेलकी सजा दी गई थी। इन लोगों को इस प्रकारका भोजन करनेकी आदत नहीं थी; इसलिए उनसे इस बातकी आशा करना कि वे एक बारगी उसे अंगीकार कर लेंगे, सम्भव न था। इसलिए यह एक बड़ी चिन्ताकी बात थी। जेलके गवर्नरका ध्यान बाकायदा इस ओर आकर्षित किया गया। उन्होंने नियमोंके कारण अपनी असमर्थता प्रकट की। मजहबकी बिनापर उठाई गई किसी आपत्तिपर तो वे गौर करनेके लिए बिलकुल राजी थे, परन्तु जहाँ बात केवल पसन्दगी और नापसन्दगीकी थी वे मदद करनेमें असमर्थ थे। जेल-जीवन आखिर जेल-जीवन ठहरा; लोगोंकी रुचियोंका वहाँ खयाल नहीं किया जा सकता। मामला अगर केवल रुचिका ही होता, तो यह कहना ठीक था। परन्तु दुर्भाग्यसे यह बात आदतकी थी। चूँकि खुराक सम्बन्धी तालिका एशियाई लोगोंकी