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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जातीय आदतोंका उचित खयाल रखे बगैर तैयार कर ली गई थी, इसलिए तनावमें पड़कर यह व्यवस्था टूट गई। जिस प्रकार भारतीयोंके लिए कढ़ी इत्यादि अतिरिक्त राष्ट्रीय व्यंजनोंकी आशा करना मूर्खतापूर्ण होता, उसी प्रकार जेल अधिकारियोंके लिए ऐसा भोजन निर्धारित कर देना जो भारतीयोंको मुआफिक न आता हो--फिर वह डॉक्टरी खयाल से चाहे जितना पौष्टिक क्यों न हो--मूर्खतापूर्ण था। गाय या बकरीका उबला हुआ गोश्त भारतीयोंके लिए उतना ही निकम्मा होता है जितना मकईका दलिया। वे गेहूँ या चावलसे बनी चीजोंपर, फिर वे चाहे जितनी सादी क्यों न हों, बसर कर सकते थे, परन्तु आफ्रिकामें नफीस माने जानेवाले भोजनोंपर नहीं। फलतः कैदियोंकी इस नई टोलीको भूखों मरनेकी नौबत आ गई। उन्होंने सुबहका नाश्ता छोड़ दिया और जो चावल उन्हें दोपहरके भोजनके लिए मिलता था, अर्थात् चार औंस चावल तथा एक औंस घी, चूँकि नाश्तेके साथ भी अपर्याप्त था, उन लोगोंके लिए तो बहुत ही कम था जिन्हें सुबह से निराहार रहनेके बाद चावलकी उपर्युक्त मात्रा ही दी जाती थी।

जेलखानेमें प्रार्थनापत्र

इसलिए नीचे लिखी हुई अर्जी[१] जेलके गवर्नरकी मारफत जेलोंके निदेशक (डायरेक्टर ऑफ प्रिजन्स) के पास भेजी गई।

जैसा कि आवेदनपत्रके अन्तिम भागमें कहा जा चुका है, लगभग सत्तर सत्याग्रहियोंके आ जानेके कारण मैंने गवर्नरसे प्रार्थना की कि वे तार या टेलिफोन द्वारा हमारी शिकायतोंको बड़ी सरकारके पास भेज दें और अविलम्ब आदेशकी प्रार्थना करें। उन्होंने कृपापूर्वक ऐसा किया और फौरन आदेश जारी हुआ कि आगे विचार करने तक नाश्तेमें मकईके दलियेकी जगह चार औंस डबलरोटी और शामके भोजनमें मकईके दलियेकी जगह आठ औंस डबलरोटी दी जाया करे। जब इस मामलेपर और आगे विचार किया जा रहा था, समझौता हो गया और हम सब रिहा कर दिये गये।

तुलना

तो भी पाठक यह तो समझ ही गये होंगे कि एशियाई कैदियोंके भोजनका यह प्रश्न इतना महत्त्वपूर्ण है कि उसे छोड़ा नहीं जा सकता। ट्रान्सवालकी जेलोंमें साधारणतया बहुत ही कम भारतीय कैदी होते हैं इसलिए इस ओर इसके पूर्व किसीका ध्यान नहीं गया। निदेशक जिस परिवर्तनका हुक्म दिया उसके कारण सबसे बड़ी शिकायत तो रफा हो गई है। लेकिन सादी कैद भुगतनेवाले कैदियोंके लिए भी चार औंस डबलरोटी, एक कौर ही है। यद्यपि स्वास्थ्याधिकारी (मेडिकल ऑफिसर) ने कहा है कि वर्तमान खुराकके अलावा कोको, मक्खन या दालका दिया जाना स्वादिष्ट भोजन देने जैसा माना जायेगा इसलिए उसे जेल भोजनके रूपमें दिये जानेकी मुमानियत है तथापि मेरा खयाल यह है कि इसमें रोटीको खाये जाने योग्य बनानेके लिए उपर्युक्त ढंगकी किसी-न-किसी चीजका जोड़ा जाना नितान्त आवश्यक है। अब हम तनिक सादे यूरोपीय कैदियोंकी खुराकके परिमाणपर गौर करें। इन्हें सुबहके नाश्ते के लिए एक पिंट दलिया और चार औंस डबलरोटी, दोपहरके भोजनमें प्रतिदिन आठ औंस रोटी या सेम या आलू या सब्जियोंके साथ गोश्त या शोरबा; रातके भोजनके लिए आठ औंस डबलरोटी और एक पिट दलिया दिया जाता है। मुझे मालूम हुआ है कि उन्हें कोको या अन्य ऐसा ही कोई पेय भी

 
  1. पाठके लिए देखिए "प्रार्थनापत्र: जेल निदेशकको", पृष्ठ ३८-३९।