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दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति

दिया जाता है। अब, यह बात समझमें नहीं आती कि यूरोपीयोंको दलिया तथा चार औंस रोटी क्यों दी जाती है जबकि भारतीयोंको दलियाके स्थानपर केवल चार औंस रोटी मिलती है। क्या उन्हें भारतीयोंकी अपेक्षा अधिक भूख लगा करती है? और फिर भारतीय केवल बारह औंस सेमकी फलियाँ क्यों पायें, जब कि यूरोपीयोंको उतनी ही फलियोंके अलावा आठ औंस डबलरोटी भी मिलती है? यह ऐसी असंगति है जिसको समझ पाना बहुत कठिन है। यूरोपीय लोग कई तरहका बढ़िया या अधिक मँहगा भोजन पायें इसे सहन करना सम्भव है परन्तु भोजनके परिमाणके सम्बन्धमें यह सम्भव नहीं है। इसलिए, स्पष्ट है कि भारतीयोंको दिये जानेवाले भोजनमें बहुत फेरफारकी आवश्यकता है। और फिर, मेरी रायमें इस बातसे कि उपनिवेश-सचिवने कभी ऐसे कैदियोंके भोजनके बारेमें, जो साधारण कैदी नहीं माने जा सकते, जानकारी हासिल करनेकी तकलीफ गवारा नहीं की, भारतीय समाजके प्रति उनकी हृदयहीन तिरस्कार-भावना व्यक्त होती है। समझौता हो चुका है; इसलिए मामलेके इस दर्दनाक पहलूपर हम अधिक नहीं कहना चाहते।

[ अंग्रेजी से ]
इंडियन ओपिनियन, २१-३-१९०८

७०. दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति

श्री रिचके साप्ताहिक पत्र आते रहते हैं, किन्तु फिलहाल वे उतने जरूरी नहीं हैं, इसलिए हम उन्हें प्रकाशित नहीं करते। जो तथ्य उनसे मिलते हैं उनके विषयमें तार पहले मिल चुके होते हैं, इसलिए वे पुराने-से जान पड़ते हैं। किन्तु अपने अन्तिम पत्रमें उन्होंने इस विषय में प्रश्न किया है कि समिति कायम रखी जाये या नहीं। इसलिए हम उसकी कुछ बातें नीचे दे रहे हैं:

मंगलवारको समितिको बैठकमें इस विषयपर चर्चा हुई कि भविष्यमें क्या किया जाये। लॉर्ड ऐम्टहिल उपस्थित थे। उनके सिवा सर मंचरजी, श्री टी० जे० बेनेट,[१] सर विलियम वेडरबर्न,[२] डॉक्टर थॉर्नटन और श्री पोलक[३] उपस्थित थे।

लॉर्ड ऐम्टहिलने बताया कि समितिका सच्चा काम तो अब शुरू हुआ समझना चाहिए। दूसरे सदस्योंने भी राय जाहिर की कि समितिको खत्म करना बहुत गलत होगा। आपने देखा होगा कि लॉर्ड ऐम्टहिलकी कोशिश अभी जारी ही है। कुछ सदस्योंका तो यहाँतक आग्रह है कि समितिने ऐसा काम किया है कि उसे किसी भी तरह जारी रखना चाहिए। आपका क्या मत है, यह जाननेके लिए समितिने मुझसे

 
  1. वॅनेट कोलमैन ऍड कम्पनीसे सम्बन्धित; दी टाइम्स ऑफ इंडियाके प्रकाशक तथा दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिके एक सदस्य।
  2. बम्बई सिविल सर्विसके सदस्य, अवकाश प्राप्त करनेपर संसद-सदस्य; भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी ब्रिटिश समितिके अध्यक्ष, १८९३; कांग्रेसके अध्यक्ष १९१०।
  3. हेनरी पोलकके पिता, दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिके निर्माणमें जिनका प्रमुख हाथ रहा; वे उसके सदस्य भी रहे; देखिए खण्ड ६।