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७१. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

यूरोपीयोंको भारतीयोंका प्रीति-भोज

भारतीय समाजने अपने कुछ कर्त्तव्योंमें से एक कर्त्तव्य गत शनिवार तारीख १४ को पूरा किया। सत्याग्रह संघर्षमें कुछ गोरोंने अच्छी-खासी मदद की थी। उनके सम्मानमें कुछ-न-कुछ करना समाजका कर्तव्य था। अन्तमें यह निश्चय हुआ कि टिकटें निकालकर प्रीति-भोज दिया जाये। टिकटोंका शुल्क रखा जाये और उनकी आमदनीसे निमन्त्रित गोरोंको भोज दिया जाये। इससे यह भी मालूम हो जायेगा कि भारतीय मुखिया कुछ खर्च करनेको तैयार हैं या नहीं। संघपर बिना कोई अधिक बोझ पड़े गोरोंसे सम्बन्ध घनिष्ठ करनेकी यह बात सबको पसन्द आई और भोजकी तिथि निश्चित कर दी गई। श्री केलनबैककी[१] मददसे भोजके लिए मेसॉनिक हॉल मिल गया और वहाँके मन्त्रीने भोजन तैयार करानेकी जिम्मेदारी अपने सिर ले ली। प्रत्येक टिकटकी दर दो गिन्नी रखी गई। मेसॉनिक हॉलके मालिकने प्रति व्यक्ति १० शिलिंग लिया। भोजके निमन्त्रणपत्र छपवाने आदिका खर्च अतिरिक्त हुआ। जिन गोरोंको आमन्त्रित किया गया, वे थे श्री हॉस्केन ( संसद-सदस्य ), श्री और श्रीमती फिलिप्स, श्री और श्रीमती डोक, श्री कार्टराइट ( ट्रान्सवाल 'लीडर' के सम्पादक ), श्री डेविड पोलक, श्री और श्रीमती वॉगल, श्री आइज़क, श्री ब्रिटलबैंक, रेवरेंड श्री पेरी,[२] श्री कैलनबैक, श्री मैकिंटायर,[३] कुमारी स्लेशिन, श्री और श्रीमती पोलक, श्री ब्राउन,[४] तथा 'रायटर' के प्रतिनिधि श्री प्रॉक्टर। अन्य जिन लोगोंको आमन्त्रित किया गया था, उनमें श्री स्टेंट ( 'प्रिटोरिया न्यूज' के सम्पादक), श्री एडवर्ड्स, श्री लिख्तन्स्टाइन,[५] श्री लुई, श्री हॉफमेयर,[६] तथा श्री हावर्ड पिम भी थे। ये सज्जन उपस्थित नहीं हुए, किन्तु इनमें से लगभग सभीने शुभ कामनाएँ भेजी थीं। श्री स्टेंटने तार भेजा था। श्री पिमने अपने पत्रमें लिखा था कि "मुझे दुःख है कि मैं अन्यथा व्यस्त होनेके कारण आ नहीं सकता; मैं हृदयसे आशा करता हूँ कि आपका काम सफलतापूर्वक सम्पन्न होगा और सरकार तथा भारतीय समाजके बीच जो सद्भाव पैदा हुआ है, वह सदा बना रहेगा। "चीनी संघके प्रमुख श्री क्विन भी उपस्थित थे। भारतीयोंकी संख्या लगभग ४० थी।

 
  1. हरमान कैलनबैक; जोहानिसबर्गके एक सम्पन्न वास्तुकार और "आध्यात्मिक प्रवृत्तियोंके व्यक्ति।" उन्हें फोक्सरस्टके एक यूरोपीयने उनकी भारतीयोंके प्रति सहानुभूतिके कारण द्वन्द्व-युद्धके लिए चुनौती दी थी। उन्होंने उसे यह कहकर नामंजूर कर दिया कि "मैंने शान्तिका धर्म अपना लिया है"। वे स्वयं सत्याग्रही हो गये थे और उन्होंने जोहानिसबर्गके पास स्थित अपना १२०० एकड़का 'टॉल्स्टॉय फार्म' सत्याग्रहियोंके परिवारोंको रखनेके लिए दे दिया था। वे इसमें खातीगीरी, बागवानी और जूते बनाना सिखाते थे। जूते बनाना उन्होंने ट्रैपिस्ट मठमें सीखा था। वे गांधीजीके साथ मिलकर भोजन सम्बन्धी प्रयोग करते थे। गांधीजीने कहा है कि उनमें "तीव्र भावना, व्यापक सहानुभूति और बाल-सुलभ सरलता" है। देखिए दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास और आत्मकथा।
  2. रेवरेंड पेरी: जोहानिसबर्गके ट्रायविले बेप्टिस्ट गिरजाघर के पादरी।
  3. जे० डब्ल्यू० मैकिंटायर; एक स्कॉट थियॉसफिस्ट और गांधीजीके मुंशी
  4. एफ० एच० ब्राउन; लन्दनमें टाइम्स ऑफ इंडियाके संवाददाता; १९०६ में ट्रान्सवाल एशियाई कानून-संशोधन अध्यादेशके सिलसिलेमें लॉर्ड एलगिन और श्री मार्लेसे भेंट करनेवाले शिष्टमण्डलके एक सदस्य।
  5. तथा
  6. जोहानिसबर्गके वकील।