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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जस्टिस अमीर अली

ब्रिटिश भारतीय संघके सदस्योंने श्री जस्टिस अमीर अलीको मानपत्र देनेका निश्चय किया है और वह लॉर्ड ऐम्टहिलको भेजे जानेवाले मानपत्रके ही साथ जायेगा।

इसके सिवा जिन्होंने संघर्षमें भाग लिया है उन सबको हमीदिया इस्लामिया अंजुमनने मानपत्रके रूपमें पत्र लिख भेजनेका प्रस्ताव किया है। जिन लोगोंको ये पत्र भेजे जायेंगे, यथासम्भव उन सबके नाम प्रकाशित किये जायेंगे।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, २१-३-१९०

७२. मेरा जेलका अनुभव [३]

खूराक

खुराकका प्रश्न कई व्यक्तियोंके लिए कई परिस्थितियोंमें विचारणीय हो जाता है। किन्तु कैदियोंके लिए तो यह प्रश्न और भी विचारणीय हुआ करता है। उनका स्वास्थ्य बहुत हदतक अच्छी खूराकपर ही आश्रित रहता है। खूराकके बारेमें नियम यह है कि जेलमें जो मिले वही लिया जाय; तथा दूसरी जगहसे कुछ न लिया जाये। फौजियोंको जो खुराक मिलती है वही लेनी पड़ती है किन्तु उनमें और कैदियोंमें बड़ा अन्तर है। सिपाहीको उसके भाईबन्द दूसरी खानेकी चीजें भेज सकते हैं और वे उन्हें ले सकते हैं। कैदीको तो खानेकी और कोई चीज लेना मना है। खूराककी असुविधा कैदखानेका बड़ा चिह्न है। बातचीतमें भी जेलका अधिकारी कहेगा कि जेलमें स्वादकी बात तो है ही नहीं। सुस्वादु वस्तु जेलमें नहीं दी जाती। जब जेलके डॉक्टरसे मेरी बातचीत हुई तब मैंने उससे कहा कि रोटीके साथ चाय अथवा घी अथवा अन्य किसी वस्तुकी जरूरत है। तो उसने कहा कि यह तो आप स्वादके विचारसे माँग रहे हैं, जो जेलमें सम्भव नहीं है।

अब हम जेलकी खुराकका विचार करें। जेलके नियमके मुताबिक पहले हफ्ते भारतीयोंको निम्नानुसार खुराक मिलती है: सवेरे १२ औंस मकईके आटेकी लपसी, चीनी या घीके बिना। दोपहरको ४ औंस चावल और १ औंस घी। शामको चार दिन १२ औंस मकईके आटेकी लपसी। तीन दिन १२ औंस उबाली हुई सेम और नमक।

यह खूराक वतनियोंको दी जानेवाली खुराकके आधारपर तय की गयी है। अन्तर इतना ही है कि शामको वर्तनियोंको कूटी हुई मकई तथा चर्बी दी जाती है। उसकी जगह भारतीयोंको [ दोपहर के भोजनमें ] चावल मिलता है।

दूसरे हफ्तेसे और उसके बाद सदाके लिए मकईके आटेके साथ दो दिन उबाले हुए आलू और दो दिन कोई दूसरी तरकारी, जैसे पत्तागोभी तथा कद्दू आदि, दी जाती है। जो मांस खाते हैं उन्हें दूसरे हफ्तेसे इतवारके दिन तरकारीके साथ गोश्त भी दिया जाता है।

जो कैदी पहले पहुँच गये थे उन्होंने सोचा था कि सरकारसे कोई रियायत नहीं माँगेंगे और जो खूराक मिलेगी, तथा उसमें से जो पुसायेगी उसीसे काम चला लेंगे। वास्तवमें ऊपरकी खूराक भारतीयोंके लिए उपयुक्त नहीं कही जा सकती। वैद्यकके हिसाबसे ऊपरकी खुराकसे पर्याप्त पोषण मिल सकता है। मकई वतनियोंकी तो सदाकी खूराक है। इसलिए ऊपरकी खूराक उन्हें बहुत