हों तो कैदी कैसा? जो अपने मनको मार सकता है वह कष्टमें आनन्दका अनुभव करके जेलमें मौजसे रह सकता है। फिर भी दुःखकी बात वह भूलता नहीं। उसे दूसरोंकी खातिर इसे भूलना भी नहीं चाहिए। फिर, हम अपने सारे आचारोंको ऐसे हठपूर्वक पकड़े हुए हैं कि उनमें बिना कोई परिवर्तन किये काम नहीं चल सकता। 'जैसा देश वैसा भेष'--यह कहावत प्रसिद्ध है। हम दक्षिण आफ्रिकामें रहते हैं तो हमें यहाँकी खूराकमें जो भी अच्छा है उसकी आदत डाल लेनी चाहिए। पुपु गेहूँकी तरह अच्छी, सादी और सस्ती खूराक है। उसमें स्वाद नहीं है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। कई बार वह गेहूँसे भी बढ़कर लगती है। फिर मेरे खयालसे तो हम जिस देशमें रहते हैं उस देशके सम्मानकी दृष्टिसे वहाँकी भूमिमें जो पैदा होता हो सो खाद्य, यदि खराब न हो तो, अंगीकार करना उचित है। अनेक गोरे, उन्हें पसन्द है इसलिए, सबेरे पुपु लेते हैं; उसके साथ दूध अथवा घी अथवा चीनी मिलनेसे वह स्वादिष्ठ बन जाती है। इसलिए उक्त कारणोंसे और हमें अभी फिर कई बार जेल जाना पड़ेगा इसलिए पुपु खानेकी आदत हर भारतीयको डाल लेनी चाहिए; यदि हम ऐसा करें तो केवल नमकके साथ पुपु खानेका अवसर उपस्थित होनेपर भी बहुत कठिनाई नहीं होगी। अपनी कुछ आदतोंको देशके भलेके लिए छोड़े बिना चारा नहीं है। जो राष्ट्र आगे बढ़े हैं उन्होंने महत्त्वहीन बातोंका आग्रह नहीं रखा है। मुक्ति सेना (साल्वेशन आर्मी) के लोग जिस देशमें जाते हैं वहाँके अच्छे रिवाज, पोशाक आदि ग्रहण करके लोगोंका मन हर लेते हैं।
इंडियन ओपिनियन, २१-३-१९०८
७३. पत्र: मगनलाल गांधीको
[ जोहानिसबर्ग ]
मार्च २६, १९०८
तुम्हारा पत्र मिला। मैं आशा करता हूँ, तुम श्री पोलकसे निरन्तर सम्पर्क बनाये रखोगे। मैं समझौतेके सम्बन्धमें भारतीय समाचारपत्रोंकी कतरनें देखना चाहता हूँ। मुझे आशा है, हसनके[२] जानेसे पहले तुमने उसका स्वागत-सत्कार किया होगा।
श्री बद्रीसे कहो कि रुपया फिरसे जमा कर दिया गया है और ब्याज उसके खाते में जुड़वा दिया गया है। श्री लैबिस्टरसे मुझे डेनहाऊसर-सम्पत्तिके कागजात मिल गये हैं और मैं उनको देख रहा हूँ। इसके बाद श्री बद्रीको इस मामलेमें और ज्यादा लिखूँगा। तुम्हारा २१ पौंडके उल्लेखसे क्या मतलब है सो मैं ठीक-ठीक नहीं समझा। क्या यह रकम प्रेसको श्री बद्रीसे मिली है?
तुम्हारा शुभचिन्तक,
टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ४८०४) से।