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७४. पाँच करोड़ भुखमरीसे ग्रस्त

भारतके तारोंसे मालूम हुआ है कि लॉर्ड मिंटोने अपने भाषणमें मध्यभारतमें पाँच करोड़ लोगोंके अकालग्रस्त होनेकी बात कही है और कहा है कि यदि उन्हें मदद न मिली तो केवल अन्नकी कमीसे उनके प्राण चले जायेंगे। इस समाचारको पढ़कर किस भारतीयको रोमांच न हुआ होगा, किसका मन रो न उठा होगा? फिर भी किसीके मनमें यह आता होगा कि हम लोग इतनी दूर बैठकर क्या कर सकते हैं; कुछ यह भी सोचते होंगे कि इस मामलेमें तो भारतमें होते तो भी मदद नहीं की जा सकती थी, यह तो दैवी प्रकोप ठहरा इसलिए इसमें कुछ नहीं किया जा सकता। इसके सिवा कुछ लोग अंग्रेजी राज्यको दोष देते होंगे। हम इन सब बातोंको भ्रमपूर्ण मानते हैं। अपना नहीं, दूसरेका दोष देखना यह साधारण स्वभाव है। दूसरेकी गलती तुरन्त दिखाई पड़ जाती है, किन्तु जरा गहराईसे विचार करना चाहिए।

हमारा निश्चित अभिप्राय है कि यद्यपि यह स्थिति निस्सन्देह ईश्वरीय इच्छासे उत्पन्न हुई है, तथापि इसमें दोष हमारा है और वह मुख्य रूपसे यह है कि हममें सत्यकी बहुत कमी दिखाई पड़ती है। बहुत हदतक गोरे सोच-समझकर हम लोगोंपर झूठका आरोप लगाते हैं। सभी गोरे शत्रुताके कारण आरोप नहीं लगाते। हम ऐसे आरोपोंसे चिढ़ते हैं। यदि चिढ़नेके बदले हम उनका सम्यक् अर्थ करें और मनमें उनपर विचार करें, तो बड़ा लाभ हो सकता है।

भारतके भारतीयोंसे यहाँके भारतीय कुछ अलग नहीं हैं। यदि हम ट्रान्सवाल या नेटालको देखें, तो दिखेगा कि हम लोगोंमें झूठ बहुत बढ़ गया है। झूठके इस दोषसे हमारी हानि होती है। इस दोषको दूर करनेके बदले हम सरकारका विरोध करते हैं और उसपर रोष प्रकट करते हैं। सरकार मर्यादा छोड़ देती है, इसलिए विरोध किये बिना काम नहीं चलता। फिर भी केवल सरकारका विरोध करनेसे ही हम सुखी नहीं हो सकते।

हमें अपना विरोध भी करना चाहिए। धोखा देनेकी आदत छोड़ देनी चाहिए। हम जैसा सरकारी मामलोंमें करते हैं, वैसा ही व्यक्तिगत व्यवहारमें भी करते हैं। परिणामस्वरूप हम डरपोक बनते हैं और अपना डर ढाँकनेके लिए कदम-कदमपर प्रवंचना और दम्भका मार्ग पकड़ते हैं।

नेटालमें व्यापारिक परवानोंके लिए हम गलत ढंगसे बहुत पैसा खर्च करते हैं, किन्तु सचमुच जो सचाई बरतनी चाहिए वह नहीं बरतते। सही ढंगसे परवाने लेनेकी शक्ति बहुत थोड़े भारतीयोंमें है।

ट्रान्सवालमें सबको अपनी-अपनी पड़ी रहती है। जैसे-तैसे अनुमतिपत्र चाहिए और जितने लड़कोंको लाते बने उतनोंको दाखिल कर डालना चाहिए। यह सारा लोभ ही पापका मूल है। यह उदाहरण जल्दी समझा जा सकता है, इसलिए हमने दिया। झूठके और भी कई उदाहरण दिये जा सकते हैं।

कुछ पाठक पूछेंगे कि ट्रान्सवालके अनुमतिपत्रों और नेटालके व्यापारिक परवानोंके झूठेपनके साथ अकालका क्या सम्बन्ध है? यह बात हमारी समझमें नहीं आती, यही हमारी चूक है।