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मेरा जेलका अनुभव [४]

कसरत-कवायद सीखनेकी इजाजत गवर्नरसे ले ली थी। दरोगा बड़ा सज्जन था। अतएव वह हमें बड़ी खुशीसे सुबह-शाम कवायद करवाता था। और वह बहुत मुफीद थी। लम्बे अर्से तक यह कवायद चलती रहती तो हम सबको बड़ा लाभ होता। किन्तु जब ज्यादा भारतीय इकट्ठे हो गये, तो दरोगाका काम भी बढ़ गया और आँगन छोटा पड़ गया, इसलिए कवायद बन्द हो गई। फिर भी श्री नवाबखाँ साथ थे, इसलिए उनकी सहायतासे थोड़ी-बहुत मामूली कवायद चलती रही।

इसके अतिरिक्त गवर्नरको इजाजतसे हमने सिलाईकी मशीनपर सीनेका काम ले लिया था। उसपर कैदियोंकी जेबें सीना सीखते थे। श्री थम्बी नायडू और श्री ईस्टन इस तरहके काममें निपुण थे। इसलिए उन्होंने इसे जल्दी सीख लिया। मुझे अच्छी तरह सीखनेमें देर लगी। अभी पूरा सीखे भी नहीं थे कि इतनेमें कैदियोंकी संख्या एकदम बढ़ गई। इसलिए वह काम अधूरा ही रह गया। पाठक इस प्रकार समझ सकते हैं कि आदमी चाहे तो जंगलमें मंगल कर सकता है। इस तरह ढूँढ़कर एकके बाद एक काम करते रहते तो किसीको भी जेलकी अवधि भारी न लगती; प्रत्युत अपने ज्ञान और बलमें वृद्धि करके बाहर आते। इसके कई उदाहरण मिलते हैं कि जेलमें अच्छी नीयत रखनेवाले लोगोंने बड़े-बड़े काम भी किये हैं। जॉन बनियनने कारावासमें बड़ी तकलीफोंके बीच दुनियामें अमरता प्राप्त करनेवाली 'पिलग्रिम्स प्रोग्रेस' नामक पुस्तक लिखी। उस पुस्तकको अंग्रेज लोग बाइबिलके बाद दूसरे नम्बरकी कृति मानते हैं। श्री तिलकने बम्बईके जेलमें नौ महीनेके भीतर अपना 'ओरायन' नामक ग्रन्थ लिखा। इसलिए जेलमें अथवा अन्यत्र सुख या दुःख पाना, अच्छा या निकम्मा बनना ज्यादातर स्वयं अपने मनपर निर्भर करता है।

मुलाकात

जेलमें हम लोगोंसे मिलने कुछ अंग्रेज आया करते थे। सामान्य नियम यह था कि पहले महीनेमें कोई भी कैदीसे मुलाकात करनेके लिए नहीं आ सकता। इसके बाद प्रति मास किसी एक रविवारको एक व्यक्तिसे भेंट करनेकी इजाजत रहती है।[१] इस नियममें विशिष्ट कारणोंसे परिवर्तन किया जाता है। ऐसे फेरफारका लाभ श्री फिलिप्सने लिया। हम लोग जिस दिन जेल पहुँचे उसके दूसरे ही दिन उन्होंने श्री फोर्तोएनसे, जो चीनी ईसाई हैं, मिलनेकी इजाजत माँगी और वह उन्हें मिल गई। उक्त सज्जन श्री फोर्तोएनके साथ-साथ हम अन्य कैदियोंसे भी मिले। उन्होंने हम सबको हिम्मतके वचन सुनाये और बादमें अपनी पद्धतिके अनुसार ईश्वरकी प्रार्थना की। श्री फिलिप्स इस तरह तीन बार मिलकर गये। इसी तरह श्री डेविस नामक अन्य पादरीने भी मुलाकात की।

श्री पोलक तथा श्री कोयन[२] विशेष अनुमति लेकर एक बार मिलने आये थे। उन्हें[३] केवल दफ्तरके कामके बारेमें मिलनेकी इजाजत थी। जो इस तरह मिलने आता है उसके साथ हमेशा दरोगा रहता है। और जो बातचीत होती है वह उसके सामने हो।

 
  1. मूल गुजराती वाक्यसे यह स्पष्ट नहीं होता कि कोई कैदी महीनेमें सिर्फ एक ही मुलाकातीसे मिल सकता था, अथवा मुलाकातीको भी महीने में बस एक ही कैदीसे मिलने दिया जाता था।
  2. श्री रिचके श्वसुर-महोदय।
  3. 'उन्हें' से यहाँ तात्पर्य श्री पोलकसे है।