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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

'ट्रान्सवाल लीडर' के सम्पादक श्री कार्टराइट विशेष अनुमति लेकर तीन बार मिलने आये। वे समझौता करानेके उद्देश्यसे ही आते थे। अतएव उन्हें अकेलेमें (दरोगाकी अनुपस्थितिमें) भेंट करनेकी इजाजत थी। पहली मुलाकातमें उक्त महोदयने इस बातपर विचार-विमर्श किया कि भारतीय समाज क्या स्वीकार करेगा। दूसरी मुलाकातमें वे अपने और अन्य अंग्रेज नेताओं द्वारा तैयार किया हुआ मसविदा लेकर आये। उसमें कतिपय परिवर्तन करनेके बाद श्री क्विन, नायडू और मैंने दस्तखत किये। इस मसिवदे[१] और समझौतेके विषयमें 'इंडियन ओपिनियन' में अन्यत्र बहुत लिखा जा चुका है, इसलिए यहाँ अधिक लिखना जरूरी नहीं है।

चीफ मजिस्ट्रेट श्री प्लेफर्ड भी एक बार मिलने आये थे। उन्हें तो चाहे जब मिलनेका अधिकार है। और वे कुछ खास हमसे ही मिलने आये थे यह नहीं कहा जा सकता। फिर भी कहा जाता है कि हम सब जेलमें थे इसलिए वे विशेष रूपसे समय निकालकर आये थे।

धार्मिक शिक्षा

आजकल पश्चिमी देशोंमें सभी जगह कैदियोंको धार्मिक शिक्षा देनेका रिवाज देखा जाता है। इसलिए जोहानिसबर्गकी जेलमें कैदियोंके लिए विशेष गिरजाघर है। यह गिरजाघर ईसाइयोंके लिए है। वहाँ केवल गोरे कैदियोंको ही जाने दिया जाता है। मैंने श्री फोर्तोएनके लिए तथा अपने लिए विशेष रूपसे माँग की, किन्तु गवर्नरने कहा कि उस गिरजाघरमें केवल गोरे ईसाई कैदी ही जा सकते हैं। प्रत्येक रविवारको इस गिरजाघरमें गोरे कैदी जाते हैं और वहाँ अलग-अलग पादरी आकर धर्मकी शिक्षा देते हैं। वतनियोंके लिए भी विशेष अनुमति लेकर कुछ पादरी आया करते हैं। वतनियोंके लिए देवालय नहीं है। अतएव वे जेलके मैदान में इकट्ठे होते हैं। यहूदियोंके लिए उनके पुरोहित आते हैं।

किन्तु हिन्दू और मुसलमानोंके लिए वैसा कुछ भी नहीं है। हकीकतमें भारतीय कैदी अधिक नहीं होते; फिर भी उनके धर्मके [शिक्षणके] लिए जेलमें कोई व्यवस्था नहीं है, इससे भारतीय समाजकी हीनता सूचित होती है। इस विषयमें दोनों समाजोंके नेताओंको, दोनों धर्मोके शिक्षणके प्रबन्धका विचार, एक कैदी हो तो भी, करना चाहिए। इस कामके लिए मौलवी अथवा हिन्दू धर्मोपदेशक स्वच्छ हृदयवाले होने चाहिए। नहीं तो शिक्षण कंटक बन सकता है।

उपसंहार

अधिकांश ज्ञातव्य बातें ऊपरके लेखमें आ गई है। कारावासमें वतनियोंके साथ ही भारतीयोंकी गिनती की जाती है। इसपर अधिक विचार किया जाना चाहिए। गोरे कैदियोंको सोनेके लिए चारपाई मिलती है, दाँत साफ करनेके लिए दातुन और नाक तथा मुँह साफ करनेके लिए तौलियाके सिवा रूमाल भी मिलता है। ये सब चीजें भारतीय कैदियोंको क्यों नहीं मिलतीं, इसकी जाँच-पड़ताल करना उचित है।

किसीको ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि हमें इन बातोंमें पड़कर क्या करना है। बूँद-बूँदसे सरोवर भरता है, इस कहावतके अनुसार छोटी-छोटी चीजोंसे हमारा गौरव बढ़ता अथवा नष्ट होता है। जिनके मान नहीं, उनके धर्म नहीं, यह हमने 'अरबी ज्ञान'[२] ग्रन्थमें पढ़ा

 
  1. देखिए "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी" पृष्ठ ६४-७३।
  2. देखिए खण्ड ७, पृष्ठ ४५३।