पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/१९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५७
जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

श्री गांधीने कहा:

इस सारी प्रशंसासे एशियाई फूल न जायें, तो अच्छी बात है। अभी बहुत काम करना बाकी है। यदि यह नहीं हुआ, तो हम पीछे रह जायेंगे। सभ्यता, नम्रता और सच्चाईको साधना बहुत आवश्यक है। केवल ईश्वरपर भरोसा रखना तो बहुत साफ दिलवालोंसे ही बन सकता है।

श्री ईसप मियाँने भाषण करते हुए कहा:

चीनियोंने भारतीय कौमको परास्त कर दिया है। भारतीय लोगोंकी अपेक्षा वे बहुत-सी बातोंमें बढ़ गये हैं। भारतीय और चीनी इकट्ठे होकर लड़े, यह बहुत अच्छा हुआ। मैं स्वयं ब्रिटिश राज्यका विश्वास छोड़ देनेकी बातपर आ गया था। अब लगता है कि यदि न्याय प्राप्त करनेवाले मेहनती और सच्चे हों तो ब्रिटिश राज्यमें न्याय मिल सकता है।

इसके बाद सम्राट्का गीत गाकर सभा ११ बजे समाप्त हुई।

क्रूगर्सडॉर्पमें शिक्षा

क्रूगर्सडॉर्पमें काले बच्चोंकी पाठशालाएँ हैं। उसमें कुछ केपके छोकरे जाते हैं; भारतीय नहीं जाते अथवा बहुत थोड़े जाते हैं। इसलिए भय है कि कहीं सरकार वह शाला बन्द न कर दे। अतएव भारतीय माता-पिताओंको चाहिए कि शालामें भेजने योग्य अपने बच्चोंको वे पाठशाला में भेजें। "नहीं-मामासे काला मामा ठीक" इस कहावतके अनुसार मैं भारतीय माता-पिताओंको सलाह देता हूँ कि इस पाठशालाका उपयोग किया जाये। मैंने सुना है कि कुछ मद्रासी बालक वहाँ जाते हैं।

परवानोंके विषयमें

मैं पिछली बार परवानोंके विषयमें लिख चुका हूँ। संघके नाम प्रिटोरिया से पंजीयकका तार आया है। उसमें कहा गया है कि अभीतक बहुत थोड़े भारतीयोंने परवाने लिये हैं। यदि वे तुरन्त परवाने नहीं लेंगे, तो उनपर बिना परवाना व्यापार करनेका मुकदमा चलाया जायेगा। विजय प्राप्त करनेके कारण कुछ भारतीय कदाचित् यह मान रहे हैं कि अब उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ा जा सकता। यदि कोई ऐसा सोचेगा तो वह बड़ा धोखा खायेगा और समाजको नुकसान पहुँचायेगा। फिलहाल हम जो कुछ करते हैं उसका आधार हमारी साख है। इसलिए यदि साख गई, तो हमें जो मिला है उसे भी गँवा बैठेंगे। जो समाजका भला चाहनेवाले लोग हैं, उन्हें यह बात याद रखनी चाहिए और दूसरोंको समझानी चाहिए। अँगूठेके बारेमें भी शिकायतें आ रही हैं। कदाचित कुछ लोग सोचते हैं कि सरकारको कोई भी कारण दिये बिना १० अँगुलियोंकी छाप देनेसे बच सकते हैं। किन्तु यह विचार भूलसे भरा हुआ है। यह बात याद रखनी चाहिए कि शिक्षा अथवा साहूकारीके आधारपर अथवा धर्म या ऐसे ही किसी दूसरे कारणसे दस अँगुलियोंकी छाप देनेसे मुक्ति मिल सकती है। यदि आपमें से कोई पंजीयकके सामने खड़े होकर कहे कि मैं दस अँगुलियोंकी छाप नहीं दूँगा, तो वह काफी नहीं होगा। मुझे आशा है कि परवाना और अँगुलियोंके बारेमें ऊपर कही गई बातोंका सारे भारतीय ध्यान रखेंगे।