पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/१९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

७७. मित्रके प्रख्यात नेता [१]

स्वर्गीय मुस्तफा कामेल पाशा

गत फरवरी मासमें मिस्रके प्रख्यात नेता मुस्तफा कामेल पाशा ३३ वर्षकी अल्पायुमें गुजर गये। उनका संक्षिप्त जीवन-चरित्र मिस्त्रके समाचारपत्रोंके आधारपर नीचे दिया जाता है।

उनका जन्म सन् १८७४ में हुआ था। छः वर्षकी अवस्थामें उन्होंने विद्याभ्यास प्रारम्भ किया। [ घरमें ] कुछ वर्षोंके अभ्यासके पश्चात् वे काहिराके एक विद्यालयमें, जो प्रसिद्ध अब्बास पाशाकी स्मृतिमें खोला गया था, भर्ती हुए। उन्हीं दिनों उनके पिता अली एफेन्दी मुहम्मदकी मृत्यु हो गई। वे एक सरकारी विभागमें मुख्य इंजीनियर थे। मुस्तफा कामेल पाशा दस वर्षकी आयु में प्राथमिक शिक्षाकी परीक्षामें प्रथम स्थान लेकर उत्तीर्ण हुए। उसके चार वर्ष बाद वे माध्यमिक शिक्षाकी परीक्षामें पास हुए और उसमें उन्होंने एक चतुर और बुद्धिमान विद्यार्थीका नाम कमाया। पन्द्रहवें वर्षमें उन्होंने कानून और फ्रेंच भाषा पढ़ना शुरू किया। इस अवसरपर उनके राजनीतिक जीवनका बीजारोपण हुआ। कुछ समय पश्चात् विद्याध्ययनके निमित्त वे फ्रांस गये और १९ वर्षकी उम्रमें कानूनकी परीक्षा पास करके उसकी उपाधि प्राप्त की।

वे कानून सम्बन्धी अपने ज्ञानके बलपर इस छोटी उम्रमें साहसके साथ राजनीतिक क्षेत्रमें कूद पड़े और उन्होंने एक बड़ा संघर्ष शुरू किया। इस दिशामें वे अपने भाषणों और लेखों द्वारा मृत्युपर्यन्त जोरदार प्रयत्न करते रहे। काहिराकी अनेक समितियोंमें शामिल हुए और अपने भाषणोंसे उनके सदस्योंको राजनीतिक संघर्षोंमें भाग लेनेके लिए उत्साहित किया। फ्रांसके टूलस नगरके फ्रेंच चैम्बरको उन्होंने एक पत्र लिखा। यह उनके राजनीतिक जीवनका पहला महत्त्वपूर्ण कदम था। इस पत्रमें उन्होंने मिस्र देशकी कठिनाइयों और कष्टोंका वर्णन किया था। उनके इस साहसी और बुद्धिपूर्ण कार्य की बदौलत उन्हें राजनीतिक विषयों-पर सार्वजनिक रूपसे बोलनेका प्रथम अवसर प्राप्त हुआ। टूलसके ख्यातनामा राजनीतिक व्यक्तियोंके समक्ष भाषण करनेके लिए वे आमन्त्रित किये गये।

मुस्तफा कामेल पाशा अपनी वाक्पटुता द्वारा अपने श्रोताओंको किस प्रकार प्रभावित करते थे, इसका अनुमान तो वे ही लगा सकते हैं जिन्होंने उन्हें भाषण करते हुए सुना है। सार्वजनिक अथवा निजी बातचीतमें, विशेषकर अपने देशकी स्थितिके विषयमें, उनको बोलते हुए देखकर सुननेवालोंके मनमें बड़ा आनन्द होता था। अपने सार्वजनिक भाषणों द्वारा वे लोगोंमें जोश भरकर उन्हें अत्यन्त अधीर बना दिया करते थे और अपनी सच्ची देशभक्ति द्वारा उनके मन हर लेते थे। उनकी राजनीति ठेठ प्रजापक्षी (नेशनलिस्ट अथवा भारतके एक्स्ट्रीमिस्टोंकी पद्धतिसे मिलती-जुलती) थी। रावसे रंकतक सभी लोग उनके भाषणोंको सुननेके लिए उमड़ पड़ते थे। और वे प्रत्येक व्यक्तिको प्रजाकीय भाईचारेका बोध कराते थे। काहिरा और एलेक्जेंड्रियाके लोगोंमें १८९५ से १९०७ तक उन्होंने अनेक भाषण दिये। वे अपने इन भाषणोंको बड़ी बुद्धिके साथ और सुन्दर रीतिसे तैयार किया करते थे, और उनका लक्ष्य सदा पूरा उतरा।