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नेटालके भारतीय

भागोंमें बसना और उन्नति करना चाहते हैं तो हम वैसे उपाय करेंगे। इन उपायोंमें हमें तीन मुख्य दिखाई देते हैं। वे ये हैं: (१) प्रत्येक भारतीय अपने धर्मका पालन सचाई के साथ श्रद्धापूर्वक करे; (२) हिन्दुओं और मुसलमानोंमें एकता रहनी चाहिए, और (३) भारतीय प्रजाजन सच्ची शिक्षा प्राप्त करें।

यदि पहली शर्त का पालन किया जाये तो उसमें दूसरी दो शर्तोका समावेश अपने-आप हो जाता है। हम सब मुख्य धर्मोको सच्चा मानते हैं; इसलिए यदि प्रत्येक जाति अपने-अपने धर्मका उचित पालन करे तो ईश्वरमें उसका विश्वास दृढ़ हो जायेगा और उसे सत्य ही प्रिय लगेगा। यदि हम ठीक तरहसे अपने-अपने धर्मका पालन करें तो एक दूसरेके बीच झगड़ा न होगा अर्थात् एकताकी रक्षा होगी। और जो ठीक प्रकारसे धर्मका पालन करना चाहते हैं वे अशिक्षित और अज्ञानी कदापि नहीं रह सकते। वे आलसी भी न रह सकेंगे; और यदि आलस्य चला जाये तो फिर छोटे-बड़े सब शिक्षा प्राप्त करनेमें जुट जायेंगे।

हम इन विचारोंकी ओर प्रत्येक भारतीयका ध्यान आकर्षित करते हैं। हम ऐसे युगमें रहते हैं, जिसमें हमें बहुत सावधानी रखनी है।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, ४-४-१९०८

८१.नेटालके भारतीय

नेटालके भारतीयोंपर आक्रमण किया जा रहा है। कोई कहता है कि व्यापारियोंको कतई व्यापारका परवाना न देना चाहिए। कोई कहता है कि भारतीय-मात्रको नेटालसे निकाल देना चाहिए। अब उपनिवेश-सचिव डॉ० गबिन्सने अपना मत 'मर्क्युरी' में व्यक्त किया है। उसके अनुसार नेटाल सरकार गिरमिटिया भारतीयोंका प्रवेश रोकने और भारतीयोंको व्यापारिक परवाने देना बन्द करनेका कानून बनानेका विचार रखती है। उसने गिरमिटियोंका आना एक निश्चित अवधिके बाद बन्द करनेका निश्चय किया है। उसने इसी उद्देश्यसे कलकत्ताकी एजेंसी बन्द कर दी है। उसने व्यापारियोंके परवाने दस वर्ष बाद बन्द करने और दस वर्ष बाद जो भारतीय व्यापारी रह जायें उन्हें मुआवजा देकर उनकी दूकान बन्द करनेका निश्चय किया है।

गिरमिटियोंका आना बन्द किया जाये, यह बात प्रोत्साहित की जाने योग्य है। जबतक गिरमिटिया भारतीय आते रहेंगे तबतक भारतीय समाजको बिलकुल सुख-शान्ति न मिलेगी।

व्यापारिक परवाना कानून जबतक प्रकाशित नहीं किया जाता तबतक उसके सम्बन्धमें बहुत नहीं कहा जा सकता। किन्तु दस वर्षकी अवधि देकर मुआवजेकी व्यवस्थाके साथ कोई कानून बनाया जाये तो फिर अधिक कहने योग्य नहीं रहता। किन्तु भारतीयोंका उद्देश्य मुआवजा लेकर भाग जाना न होना चाहिए। जो नेटालमें रहते हैं उनका उद्देश्य यह होना चाहिए कि वे नेटालको अपना दूसरा देश मानेंगे और उसमें घर बनाकर रहेंगे। उससे कोई उनको निकालने का विचार करे तो उसे मंजूर नहीं करना चाहिए। यह देश जितना गोरोंका है उतना ही हमारा है, ऐसी भावना आनी चाहिए और वैसा ही मानकर उसको समृद्ध