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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेमें हमें गर्व अनुभव करना चाहिए। इस दृष्टिसे दस वर्षका कानून हमें पसन्द नहीं है। फिर भी हम उस कानूनको स्वीकृत होनेसे रोक न सकें, यह सम्भव है। किन्तु दस वर्षके अन्दर हम अपना तेज--अपनी स्थिति ऐसी चमका सकते हैं कि गोरे स्वयं ही हमें निकालनेकी बात करनेके बजाय रखनेका ही विचार करें। ऐसी स्थिति लाना भारतीयोंके हाथमें है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-४-१९०८

८२. हसन मियाँकी बिदाई

श्री दाउद मुहम्मदके सुपुत्र श्री हसन मियाँ, जिनके विलायत जानेकी बात बहुत दिनोंसे चल रही थी, पिछले सप्ताह विलायतके लिए रवाना हो गये हैं। उन्हें बहुत-सी दावतें और मुबारकबादियाँ दी गईं; और खुशीके नारे लगे। इस सबका यह अर्थ है कि लोग अच्छा काम देखकर प्रसन्न होते हैं और उसे पसन्द करते हैं। श्री हसन मियाँ अभी जवान हैं। उन्हें बहुत सीखना और देखना है। हम उनकी लम्बी उम्र, तन्दुरुस्ती और भलाईकी कामना करते हैं। नेटालसे विलायत जानेवाले अपने दर्जेके भारतीयोंमें श्री हसन मियाँ पहले ही गिने जायेंगे। हम श्री दाउद मुहम्मदको उनकी बहादुरीके लिए मुबारकबाद देते हैं।

भारतीय समाजको इस उदाहरणसे सबक लेना चाहिए। भारतीय समाज सच्ची शिक्षाके अभावमें न केवल पिछड़ा ही रहेगा, बल्कि और पिछड़ता चला जायेगा। विलायतकी शिक्षा, अंग्रेजीका अभ्यास, दुनियाके इतिहासका ज्ञान, विज्ञानका अध्ययन, ये सारी बातें आजके जमानेमें बहुत जरूरी हैं। इनके अभावमें मनुष्य बिना हाथ-पाँवका रह जाता है। यह ज्ञान प्राप्त करनेके बाद उसका क्या उपयोग किया जाये, यह भी समझना चाहिए। ज्ञान केवल साधन है। उससे अच्छा काम हो सकता है। पैसा कमाया जा सकता है और लोक-सेवा की जा सकती है। इस ज्ञानका उपयोग अच्छी बातोंमें और लोक-सेवाके लिए किया जाये, तो ही इसे प्राप्त करना ठीक माना जा सकता है, नहीं तो यह ज्ञान विषके समान है। हम ऐसा पहले भी कह चुके हैं; और यह बात हरएककी समझमें आ सकती है।

श्री हसन मियाँके[१] साहसका अनुकरण अन्य माता-पिता करेंगे, हमें ऐसी आशा है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-४-१९०८
 
  1. अभिप्राय स्पष्ट ही दाउद मियाँसे है।