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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हुआ था और उनकी टोलियाँ उनके पीछे फिरती रहती थीं। इससे जो लोग दूसरोंको ठगते रहते थे, उनकी ठगी बन्द हो गई और जो लोगोंको भ्रष्ट करके अपना स्वार्थ साधते थे उनकी कमाईमें बाधा पड़ने लगी।

एथेन्समें यह कानून था कि जो वहाँके परम्परागत धर्मके अनुसार न चले और दूसरोंको उस प्रकार न चलने की सीख दे उसको अपराधी माना जाये और अपराध सिद्ध होनेपर उसे मृत्युदण्ड दिया जाये। सुकरात स्वयं राज्यके धर्मके अनुसार चलते थे किन्तु उसमें जो पाखंड आ गया था उसको मिटानेके लिए दूसरोंको निर्भयतापूर्वक उपदेश देते और स्वयं उस पाखण्डसे दूर रहते थे।

एथेन्सके कानूनके अनुसार इस प्रकारके अपराधकी जाँच पंचोंके सामने होती थी। सुकरातपर राज्य-धर्मका उल्लंघन करने और दूसरोंको उसका उल्लंघन करनेकी सीख देनेका आरोप लगाया गया एवं उसपर महाजन मण्डलमें विचार किया गया। सुकरातकी शिक्षासे महाजन मण्डलके बहुत से लोगोंकी हानि हुई थी। इस कारण वे उनके प्रति वैरभाव रखते थे। उन्होंने सुकरातको अनुचित रीतिसे दोषी ठहराया और उन्हें विष पीकर मरनेका दण्ड दिया। प्राणदण्डकी अनेक विधियाँ काममें लाई जाती थीं। उनमें से सुकरातको विषपानके द्वारा मृत्युकी सजा दी गई।

यह वीर पुरुष अपने ही हाथसे विषपान करके दिवंगत हुआ और जिस दिन उसको विषपान करना था उसी दिन उसने अपने एक मित्र और शिष्य के सम्मुख शरीरकी नश्वरता और आत्माकी अमरताके सम्बन्धमें व्याख्यान किया। कहा जाता है कि सुकरात विषपानके अन्तिम क्षण तक निर्भय रहे और उन्होंने हँसते-हँसते विषपान किया। उनको जो-कुछ कहना था उसका अन्तिम वाक्य कहकर उन्होंने जैसे हम प्रसन्नतापूर्वक शर्बत पीते हैं, वैसे विषका प्याला प्रसन्नतासे पिया।

आज संसार सुकरातको स्मरण करता है। उनकी शिक्षासे लाखों लोगोंका हित हुआ है। उनपर दोष लगानेवालों और उनको दण्ड देनेवालोंकी दुनिया निन्दा करती है। सुकरात तो अमर हो गये और उनके तथा उन्हीं जैसे अन्य पुरुषोंके यशसे आज समस्त यूनान यशस्वी है।

सुकरातने अपनी सफाईमें जो भाषण दिया उसका विवरण उनके शिष्य ख्यातनामा अफलातून (प्लेटो) ने लिखा है। उसका अनुवाद बहुत-सी भाषाओंमें हुआ है। यह भाषण बहुत सुन्दर और नीति-रससे परिपूर्ण है। इसलिए हम उसको यहाँ दे रहे हैं। हम उसका शब्दशः अनुवाद नहीं, सार-मात्र देंगे।

हमें दक्षिण आफ्रिकामें, बल्कि समस्त भारतमें अभी बहुतसे काम करते हैं। तभी भारतके संकट दूर होंगे। हमें सुकरातकी भाँति जीना और मरना आना चाहिए। इसके अतिरिक्त सुकरात महान सत्याग्रही थे। उन्होंने अपने ही देश यूनानके लोगोंके विरुद्ध सत्याग्रह किया। उससे यूनानके लोग महान् हुए। हम जबतक कायरताके कारण अथवा प्रतिष्ठा न मिलने या प्राण जानेके भयसे अपने दोषोंको नहीं देखेंगे और उनको जाननेपर भी उनकी ओर अपने लोगोंका ध्यान न खींचेंगे तबतक सैकड़ों बाहरी उपाय करनेपर भी---काँग्रेसकी बैठकें करने और उग्रपंथी बननेपर भी---भारतका भला नहीं कर सकेंगे। उसका भला ऐसे न होगा। सच्चे मर्जको पहचानने, उसे स्पष्ट कर देने और उसका उचित इलाज करने के बाद जब भारतका आन्तरिक और बाह्य शरीर रोगरहित होकर भला चंगा हो जायेगा