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मिस्रके प्रख्यात नेता [२]

तब अंग्रेजी या अन्य अन्याय-रूपी कीटाणु उसको कोई क्षति न पहुँचा सकेंगे। किन्तु यदि स्वयं शरीर सड़ा हुआ होगा तो एक प्रकारके संक्रामक कीटाणुओं को नष्ट करनेपर उनकी जगह दूसरे प्रकारके संक्रामक कीटाणु अधिकार जमा लेंगे और भारतके शरीरको नष्ट कर देंगे।

हम यहाँ सुकरातके भाषणका सार इस उद्देश्यसे दे रहे हैं कि हमारे पाठक इन बातोंको ध्यानमें रखकर और सुकरात जैसे महात्माके विचारोंको अमृत जैसा जानकर उसका रसपान करें और उससे अपने आन्तरिक रोगका उन्मूलन करके अन्य लोगोंको इस प्रकारके रोगोंके उन्मूलनमें सहायता दें।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-४-१९०८

८५. मिस्रके प्रख्यात नेता [२]

विद्यार्थियोंमें वे अत्यन्त लोकप्रिय थे। एक विद्वानने कहा था कि मिस्रमें कानूनका अध्ययन करनेवाले सारे विद्यार्थी पाशाके दलके समर्थक थे। जब पाशा यूरोपसे वापिस आये उस समय उनके सम्मानमें विद्यार्थियों और दूसरे लोगों का जो जुलूस निकला था उतना बड़ा जुलूस किसी भी मिस्रीके सम्मानमें पहले कभी नहीं निकला था।

मुस्तफा कामेल पाशा उत्तम वक्ता तो थे ही; वे अच्छे लेखक भी थे। इंग्लैंडके 'डेली न्यूज़' पत्रके मतानुसार दुनियाके मुसलमानोंमें वे एक जागरूक पत्रकार थे। जब वे स्कूलमें पढ़ते थे, तभी उन्होंने 'रोममें गुलामीकी प्रथा' और 'राष्ट्रोंका जीवन' नामकी पुस्तकें लिखी थीं। उन्होंने कुछ कविताएँ और 'ऐंडेलुशीयाकी विजय' नामका एक ऐतिहासिक उपन्यास भी लिखा था। उनकी कल्पनाशक्ति और अध्यवसायकी शक्ति अक्षय थी। वे पूरे बीस वर्षके भी नहीं हुए थे, तभी उन्होंने 'अल मदरसा' नामका एक मासिक-पत्र निकाला था, जो उसमें प्रकाशित उनके लेखोंकी उग्रता और नवीनताके लिए प्रसिद्ध हो गया था। सन् १९०० में उन्होंने 'लीवा' नामका पत्र निकाला था। उसके पहले वे मिस्री और विदेशी मासिक पत्रों तथा समाचारपत्रोंमें लिखते थे। उन्हें फ्रेंच भाषाका पूरा ज्ञान था इसलिए उन्हें यूरोपीय जनताके सम्मुख मिस्त्रका सवाल रखनेके कीमती अवसर सुलभ थे। आगे चलकर उनपर कामका बोझ ज्यादा बढ़ गया। तो भी समय बचाकर उन्होंने एक पुस्तक जापानके बारेमें और एक पुस्तक पूर्वके सवालके बारेमें लिखी।

उनके अधिकांश गोरे मित्र फ्रेंच थे। पाशाकी मृत्युका दुःखदायी समाचार सुनकर उन्हें निश्चय ही गहरा आघात लगेगा---वे हाहाकार कर उठेंगे। उनके सद्गुणोंके कारण उनकी ओर बहुत लोग आकर्षित होते थे। उनका तौर-तरीका और बातचीतकी मिठास लोगोंका मन हर लेती थी और लोग उनके (राष्ट्रीय) पक्षमें शामिल हो जाते थे। मैडम जुलिएट ऐडमने, जो उनकी आजीवन मित्र रहीं, उनके भाषणोंके फ्रेंच संस्करणको प्रस्तावनामें लिखा है कि "मुस्तफा कामेलने सारे यूरोपकी यात्रा की है और अपनी इन यात्राओंमें राजनीति और पत्रकारिताके क्षेत्रमें प्रसिद्ध अनेक लोगोंके साथ उन्होंने मित्रता की है।" यह मित्रता उन्हें अपने देशके हित-साधनमें उपयोगी सिद्ध हुई।