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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

उन्होंने अपना आन्दोलन जारी रखा और [ इंग्लैंडके ] प्रधान मन्त्री तथा सर एडवर्ड ग्रेको पत्र लिखकर इस आरोपका कड़ा जवाब दिया कि मिस्रवासी स्वराज्य माँगनेके योग्य नहीं हैं। इसके बाद छठवें दिन, फरवरीकी १० तारीखको उनकी मृत्यु हो गई।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-४-१९०८

८६. जोहानिसबर्गको चिट्ठी

हमीदिया अंजुमनका पत्र

हमीदिया अंजुमनने विदेशोंमें उन लोगोंका आभार माननेके लिए मानपत्रके रूपमें चिट्ठियाँ लिखी हैं जिन्होंने कानूनके विरुद्ध लड़ाईमें हमारी मदद की। ये पत्र सुनहरे, हरे और लाल रंगमें बहुत अच्छे मोटे कार्ड-पेपरपर छापे गये हैं और इनपर सुन्दर किनारी बनी हुई है। ऐसे लगभग दो सौ पत्र जायेंगे। उनपर श्री इमाम अब्दुल कादिर, श्री फैन्सी तथा श्री कुवाड़ियाके हस्ताक्षर हैं। मजमूनका[१] अनुवाद नीचे दिया जा रहा है:

आदरणीय महोदय,

ट्रान्सवालके भारतीयोंके संघर्षमें आपने बहुत दिलचस्पी ली और हमारे समाजने मददके लिए जब जो प्रार्थना की, आपने हमेशा उसकी ओर अविलम्ब ध्यान दिया, इसके लिए हम हमीदिया इस्लामिया अंजुमनकी तरफ से हार्दिक आभार प्रकट करनेकी अनुज्ञा लेते हैं। इस संघर्षमें समाजने अपार संकट उठाये; और आखिरकार जो शुभ परिणाम निकला, उसमें आपका समर्थन बहुत सहायक हुआ है, इसमें हमें तनिक भी संदेह नहीं है। तुर्कीके मुसलमानोंपर लागू हो और वहाँकी अन्य प्रजापर लागू न हो, ऐसा धार्मिक भेद होनेके कारण मुस्लिम समाजको विशेष तौरसे उस कानूनका दुःख था; इसलिए उसे रद कराने के लिए अंजुमनका विशेष प्रयत्न करना स्वाभाविक था। और इसपर मुसलमानोंसे हमारी मदद करनेके लिए की गई दरखास्तको इतना अधिक समर्थन मिला यह हमारे अंजुमनके लिए बड़े सन्तोषकी बात है।

तीन मानपत्र

लॉर्ड ऐम्टहिल, सैयद अहमद अली तथा सर मंचरजी भावनगरीके मानपत्र तैयार हो गये हैं। वे आगामी सप्ताहमें श्री रिचको भेजे जायेंगे और श्री रिच समाजकी तरफसे इन तीनों महानुभावोंको मानपत्र देंगे, जिनमें इन महानुभावोंका आभार माना गया है।

'स्वर्ण-कानून'

सरकारने ट्रान्सवालमें निकलनेवाले खनिज पदार्थोंसे सम्बन्धित एक कानूनका विधेयक प्रकाशित किया है। वह कानून साधारण तौर पर "गोल्ड लॉ" अर्थात् 'स्वर्ण-कानून' कहलाता

 
  1. मूल अंग्रेजी मानपत्र इंडियन ओपिनियनके १८-४-१९०८ के अंक में प्रकाशित हुआ था।