पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/२०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। सरकारका इरादा उसे संसदकी आगामी बैठकमें पास करानेका है। जो स्वर्ण-कानून फिलहाल अमलमें है, यह मसविदा उससे मिलता-जुलता है। किन्तु पहले इसमें काले आदमियोंसे सम्बंधित कुछ धाराओंके दो अर्थ निकलते थे; वे अब स्पष्ट रूपसे उनके विरुद्ध कर दी गयी हैं। प्रचलित कानूनके अनुसार सरकारने जोहानिसबर्ग इत्यादि नगरोंमें परवाने देनेसे इनकार कर दिया था। रुडीपूर्टमें जो मुकदमा हुआ, 'इंडियन ओपिनियन' के पाठकोंको उसका स्मरण होगा। किन्तु कानूनका निश्चित अर्थ न होनेके कारण सरकारने अपना आग्रह छोड़ दिया था। अब यदि ऊपरके मसविदेके मुताबिक कानून बन जाये तो खनिज प्रदेशकी जमीनके लिए काले लोगों और भारतीयोंको परवाने नहीं मिल सकेंगे; यही नहीं, वे वहाँ रह भी नहीं सकेंगे। इसका यह अभिप्राय हुआ कि खनिज प्रदेशवाले भागमें भारतीय और दूसरे काले लोग केवल बस्तियोंमें ही रह सकेंगे। उस कानूनके दूसरे खण्ड भी ज्ञातव्य हैं। इसका सारांश मैं अंग्रेजी विभागको भेज रहा हूँ। किन्तु मुख्य जानने योग्य बात तो जो मैंने बताई, वही है। इस कानूनके विरुद्ध भारतीय समाजको जबरदस्त संघर्ष करना पड़ेगा। विलायतका एक अंग्रेजी अखबार हमारे पक्षमें लिख चुका है। किन्तु सच्चा बल तो तभी चमकेगा जब हम वह सब करेंगे जो हमें करना चाहिए। हमारा आशा करना तभी शोभाजनक होगा। इस प्रकारके प्रयत्न भारतीय समाजके खिलाफ हमेशा होते ही रहेंगे। और हम जितना उनका विरोध करते रहेंगे उतने जीतते रहेंगे तथा शक्तिशाली बनते जायेंगे।

सच्चा इन्साफ

सोफियानगरमें कुछ वतनी अपने नाम जमीन लेकर बस गये हैं। यह क्षेत्र नगर-पालिकाकी सीमामें है। उसके नियमके अनुसार कोई वतनी नगरपालिकाकी इजाजतके बिना 'बस्ती' के बाहर नहीं रह सकता। नगरपालिकाने उपर्युक्त वतनियोंपर इस धाराकी रूसे मुकदमा चलाया। न्यायाधीशने उन्हें दण्ड दिया। वतनियोंने अपील की। उसमें वे लोग जीत गये हैं। सर्वोच्च न्यायालयने फैसला दिया है कि नगरपालिकाका यह नियम इन वतनियोंके लिए बेकायदा माना जायेगा।[१] यह निर्णय देते हुए न्यायाधीश वेसेल्सने नगरपालिकाके मुकदमेको अत्याचार कहकर उसकी निंदा की और कहा कि सभ्य राष्ट्रमें अपनी सम्पत्तिके उपभोगके अधिकारपर आघात नहीं किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय सदा ऐसा न्याय करता आया है, यह सन्तोषकी बात है।

पंजीयन

लोग पंजीयन करा रहे हैं। प्रिटोरियामें कुछ भारतीयोंको १० अँगुलियोंकी छाप देनेमें सख्त आपत्ति थी; श्री चैमने उनकी आपत्ति स्वीकार नहीं करते थे। अब उसका फैसला हो गया है। उनके पंजीयनके लिए प्रिटोरियामें कार्यालय खास तौरपर खुला रखा जायेगा। जिन्होंने अबतक दरखास्त नहीं दी है, उन्हें अवसर देनेके विचारसे जोहानिसबर्गमें भी कुछ समय के लिए दफ्तर फिरसे खोला जायेगा। फिलहाल दफ्तर पीटर्सबर्ग, पाँचेफ्स्ट्रूम इत्यादि

१. देखिए परिशिष्ट २।

 
  1. यद्यपि एक न्यायाधीशने कहा कि, "कानून भले ही नगरपालिकाके पक्षमें हो किन्तु न्याय पूरी तरह प्रार्थियोंके पक्षमें है; "किन्तु अदालतने इस मुद्देपर कोई निर्णय नहीं दिया। उसने सजा इस आधारपर रद की कि, 'तिथि निश्चित करनेवाला प्रस्ताव गजटमें प्रकाशित या अन्य किसी रीतिसे प्रसारित नहीं किया गया'।