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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

स्थानोंमें घूम रहा है और ऐसी आशा है कि पंजीयनकी अर्जियाँ १० अप्रैल तक पूरी आ चुकेंगी। खयाल है कि उसके बाद पंजीयन-पत्र देनेमें एक महीना लग जायेगा।

उतावले भारतीय

बाहर रहनेवाले भारतीय ट्रान्सवालमें प्रवेश पानेके लिए बड़ी उतावली करते दीख पड़ रहे हैं। कुछ लोग गलत तरीकेसे भी दाखिल हो जाते हैं। मुझे इन सबसे कहना चाहिए कि इस तरह वे समाजको हानि पहुँचायेंगे। जिनके पास युद्धके बादका सच्चा अनुमतिपत्र हो, उनके आने में रुकावट नहीं है। किन्तु दूसरे भारतीयोंको अभी राह देखना लाजिम है।

गोरे फेरीवाले

क्रूगर्सडॉर्पमें श्री बेलीने जो भाषण दिया है उससे गोरे फेरीवाले बड़े आवेशमें आ गये हैं।[१] उन्होंने २०० पौंडकी मदद माँगी है। श्री बेलीने इस सम्बन्धमें ५० पौंड देनेको कहा है। उनका विचार भारतीय फेरीवालोंको छकानेका है। ऊपरकी हलचलोंमें कोई खास दम हो, ऐसा नहीं लगता। किन्तु यदि ऐसी हलचलके जारी रहते हुए हम बैठे रहें, तो अन्तमें नुकसान होगा, इसमें भी शक नहीं है। इसलिए भारतीय कीमको याद रखना है कि जिस शत्रुसे उसे टक्कर लेनी है, वह घड़ी दो घड़ीमें ही चीं बोल जानेवाला शत्रु नहीं है; बल्कि पैंतरे बदल-बदलकर सामने आनेवाला वीर है। भारतीय फेरीवाले इसे विशेष तौरसे समझ लें कि उन्हें अपना सामान साफ-सुथरा रखना चाहिए, प्रामाणिक ढंगसे बेचना चाहिए और उद्दण्डता नहीं करनी चाहिए।

उटशुरनके भारतीय

उटशुरन (केप उपनिवेश) से संघके नाम तार आया है। उसमें वहाँके प्रमुख श्री मुहम्मद खाँ सूचित करते हैं कि 'लगभग ४० भारतीयोंकी एक सभा हुई और उसमें संघके कामोंमें मदद करनेके लिए निधि इकट्ठी की गई; यह अगले हफ्ते भेज दी जायेगी।' उक्त अवधि बीच चुकी है, इसलिए अब किसी भी समय रकम मिल जानेकी सम्भावना है।

पंजीयनके विषयमें अन्तिम समाचार

तारीख ३० मार्च तक पंजीयनके लिए ७,२६२ प्रार्थनापत्र दिये गये हैं। उस तारीख तक ४,०९६ प्रमाणपत्र स्वीकृत हुए और उनपर हस्ताक्षर किये गये। सारे उपनिवेशमें अनेक स्थानोंपर कार्यालय खुल चुके हैं और तमाम लोग पंजीयन कराने लगे हैं।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-४-१९०८
 
  1. देखिए पादटिप्पणी पृष्ठ १५८।