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८७. नेटाल डायरेक्ट-लाइनके जहाज

हम अपने पत्रके गुजराती स्तम्भोंमें संवाददाताओंके भेजे हुए दो पत्रोंका सारांश छाप रहे हैं। पत्रोंमें नेटाल डायरेक्ट-लाइनके भारत जानेवाले जहाजोंमें स्थानकी कमी तथा अन्य असुविधाओंकी शिकायत की गई है। मुसाफिरोंकी शिकायत है कि उनके पाखाने खराब और गन्दे हैं; छत (डेक) परकी जगह तंग है और आरामदेह नहीं है; निचली मंजिल तो बहुत ही छोटी है; उसमें जितने मुसाफिरोंको ले लिया जाता है वे उसमें समा नहीं सकते। और भी शिकायतें हैं, जिनका फिलहाल जिक्र करना हम जरूरी नहीं समझते। हम इन जहाजोंके मालिकों और एजेंटोंका ध्यान उक्त तथ्योंकी ओर दिलाना चाहते हैं; और भरोसा करते हैं। कि छतोंमें सफर करनेवाले मुसाफिरोंकी शिकायतोंकी पूरी तौरसे जाँच की जायेगी और उनके सच निकलनेपर उन्हें दूर किया जायेगा।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-४-१९०८

८८. कुष्ठ रोगियोंकी दुआ

अंग्रेज लोग राज्य करते हैं, इसीलिए वे सुखी हैं, यह न माना जाये। उसके और बहुत-से कारण हैं। वे सुखी क्यों हैं, उनके हाथमें राज्य-सत्ता क्यों है, आदि बातोंके कारणोंके बारेमें हम बीच-बीचमें विचार करते रहे हैं।[१] कुष्ठ रोगियोंके एक चिकित्सालयका वर्णन पढ़ते हुए हमें फिर उस प्रकारका विचार करनेका एक कारण मिला। भारतमें बहुत कुष्ठ रोगी दिखाई पड़ते हैं। साधारण तौरपर हम ऐसे रोगियोंका तिरस्कार करते हैं, उन्हें अपने बीचसे हटा देते हैं। कुछ लोग ऐसा तो नहीं करते; किन्तु फिर भी उनकी दवा-दारू करनेवाले अथवा उनके लिए अच्छे औषधालय बनवाने वाले लोगोंके उदाहरण हमें अपने बीच नहीं मिलते। देखा यह जाता है कि इनकी सार-सँभाल करनेका काम गोरोंने ही उठा रखा है। हिन्दुओंने एक समूचा वर्ग ही ऐसा बना रखा है जिसे वे छूते नहीं हैं; जिसपर वे जुल्म करते हैं और बड़ी मुश्किलसे उनकी गिनती आदमियोंमें करते हैं। इस वर्गका संरक्षण भी गोरे ही करते हुए दिखाई पड़ते हैं।

भारतमें चंदकुरी नामका एक गाँव है। उसमें ईसाई पादरियोंने कुष्ठ रोगियोंका अस्पताल बनाया है। वे उसमें किसी भी भारतीय कुष्ठ रोगीको दाखिल कर लेते हैं। सन् १९०० के पहलेकी जनगणनाके अनुसार भारतमें कमसे-कम एक लाख कुष्ठ रोगी थे। इन लोगोंकी सार-सँभाल करनेके लिए भारतमें पादरियोंने ५० अस्पताल खोले हैं। इन अस्पतालोंमें वे इस प्रकारके रोगियोंकी शुश्रूषा करते हैं, उन्हें शिक्षण देते हैं, उनके बाल-बच्चोंका लालन-पालन करते हैं, भोजन और कपड़ा देते हैं तथा उन्हें पढ़ाते हैं। यह सारा काम करनेके लिए

 
  1. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४८२, ४८५, और खण्ड ६, पृष्ठ ४३६-३७-।