पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

९०. डंडीमें परवानेका मामला

डंडी प्रदेशमें श्री कासिम गुलाम पटेलको परवाना नहीं दिया गया, यह स्पष्ट अन्याय हुआ है। परवाना न देनेका कारण यह बताया गया कि उन्होंने अपने लेनदारोंसे तीन बार समझौता किया है। कोई व्यक्ति अपने लेनदारोंसे तीस बार भी समझौता करे तो इससे परवानेपर आघात क्यों होना चाहिए? ऐसा न्याय तो न्यायके प्रति अन्धे बने हुए लोग ही कर सकते हैं। एक सिंहने एक मेमनेको खा जानेका विचार किया, तो उसने उसपर आरोप लगाया कि तूने नदीके पानीको गँदला किया है। दीन मेमनेने कहा, मैं तो पानीके प्रवाहके नीचे की ओर था और आप ऊपरको और थे। इसपर सिंह राजाने दहाड़कर कहा: "तूने नहीं तो तेरे बापने गँदला किया है।" और वह मेमनेको खा गया। कुछ परवाना अधिकारियों और परवाना निकायने ऐसा ही करना आरम्भ किया है। भारतीय मेमना जब मेमना न रहकर सिंह बनेगा तब वह परवाना अधिकारियोंको भारी पड़ेगा, क्योंकि नियमके अनुसार शिष्य गुरुसे बढ़े बिना न रहेगा। क्या भारतीय सिंह जागेगा?

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-४-१९०८

९१. जहाजोंमें कष्ट

नेटाल डायरेक्ट-लाइनके[१] जहाजोंमें यात्रियोंको बहुत कष्ट होते हैं, इस आशयके दो पत्र हम इस अंकमें छाप रहे हैं। इन पत्रोंसे अनुमान किया जा सकता है कि उनमें अवश्य ही बहुत कष्ट होते होंगे। भारतीय यात्री इन कष्टोंका विरोध करने लगे हैं, इसे हम अच्छा लक्षण मानते हैं। जहाजोंमें गोरे यात्रियोंके लिए बहुत-सी सुविधाएँ देखी जाती हैं। इसका कारण यही है कि गोरोंको कष्ट होता है तो वे उसे कभी चुपचाप सहन नहीं करते। इन दोनों पत्रोंकी ओर हम उन जहाजोंके एजेंटोंका ध्यान आकर्षित करते हैं। उनका कर्तव्य है कि वे इन कष्टोंके सम्बन्धमें उचित जाँच करें और इनका निवारण करें।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-४-१९०८
 
  1. देखिए "नेटाल डायरेक्ट-लाइनके जहाज", पृष्ठ १७२।