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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

चोरीसे पीनेके कारण उन्हें जब शराब मिलती है, तो वे एकदम डटकर पी लेते हैं और नशे में चूर हो जाते हैं। प्रार्थियोंका कहना है कि बजाय इसके सबको शराबकी छूट होनी चाहिए। इस अर्जीपर कई काले आदमियोंके हस्ताक्षर लिये जा रहे हैं। भारतीयोंमें से इस प्रार्थना-पत्रपर हस्ताक्षर करनेवाला कोई मिला हो, ऐसा नहीं लगता; और हमें आशा है कि इसपर कोई भारतीय सही करेगा भी नहीं। मेरी समझमें इस अर्जीके पीछे गोरोंका हाथ है। डच राज्यकर्त्तागण कुछ हद तक वतनियोंको दारूकी छूट देनेके पक्षमें हैं। यदि इसके विरुद्ध इंग्लैंडमें कुछ हलचल न हुई होती, तो संसदकी पिछली बैठकमें ही इस प्रकारका विधेयक पास हो जाता। मैं जानता हूँ कि कुछ भारतीय शराब चोरीसे खरीदते और पीते भी हैं। पीनेवाले स्वयं भी इतना समझते हैं कि शराब पीनेकी आदत बहुत बुरी है। वे इसकी लत नहीं छोड़ते, और यह भी मानते हैं कि छोड़ना बहुत मुश्किल है। ऐसा मानते हुए वे यह बात भूल जाते हैं कि मन और आत्मामें कितना बल है। यदि एक बार हिम्मत करके वे अपनी आदत छोड़ दें, तो उनका और समस्त समाजका लाभ हो सकता है।

गुप्ती

सरकार हमें खुली तलवारते मारती है, इतना ही नहीं, वह अपने पास गुप्ती भी रखे हुए है। पिछले वर्ष कुत्तोंको रखनेके विषयमें एक कानून बनाया गया। साधारण तौरपर उस कानूनको कोई नहीं पढ़ेगा। मैंने भी उसे नहीं पढ़ा। अब जब उसपर अमल किया जा रहा है, तभी समझ में आया है कि यह एक नई परेशानी है। कुछ भारतीय नगरपालिकाकी सीमाके बाहर कुत्ते रखे हुए हैं। सरकार उन्हें कुत्ता पालनेपर हर साल १० शिलिंग देनेको कहती है। गोरे अपने कुत्तोंका निःशुल्क पंजीयन करा सकते हैं; तब फिर भारतीय और दूसरे काले आदमियोंपर ऊपर कहे अनुसार कर लगाना कहाँतक ठीक है? इस बातको लेकर शहरके भारतीयोंमें चर्चा चल रही है। कुछ इस बारेमें मुकदमा चलानेकी तैयारी कर रहे हैं। मुझे लगता है कि इस कानूनपर अमल नहीं किया जा सकता; क्योंकि इसमें बादशाहकी स्वीकृति सम्बन्धी धारा दिखाई नहीं पड़ती। रंगभेद करनेवाले प्रत्येक कानूनमें इस प्रकारकी धारा आवश्यक होती है। श्री नगदी इस विषयमें प्रयत्न कर रहे हैं, अतएव तत्सम्बन्धी अधिक जानकारी श्री नगदीसे प्राप्त की जा सकती है।

भारतीयोंकी प्रशंसा

'प्रिटोरिया न्यूज' में पंजीयनसे सम्बन्धित एक लम्बा लेख है। उसमें कहा गया है कि भारतीयों तथा चीनियोंने इसमें अच्छी मदद की है और सन्तोष दिया है। आजतक पंजीयन ठीक हुआ है। ऐसे बहुत कम मामले हैं जिनपर एतराज किया जा सकता हो।

पोलक वकील हो गये

इस पत्रके सम्पादक श्री पोलकको गत सोमवारको वकालतकी सनद मिली है। पाठकोंको याद होगा कि श्री पोलक तीन वर्षसे कानूनके अध्ययनमें लगे रहते थे। उन्होंने लन्दनकी मैट्रीक्युलेशन परीक्षा पास की है। दूसरी परीक्षाएँ भी पास की हैं। उन्हें फ्रेंच भाषा लगभग उतनी ही आती है जितनी अंग्रेजी। पिछले तीन वर्षोंमें उन्होंने ट्रान्सवालकी कानूनकी परीक्षा उत्तीर्ण की। मार्च महीनेकी पहली तारीखको श्री गांधीके साथ उनके तीन वर्ष पूरे हो गये, इसलिए

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