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एक सत्यवीरकी कथा [२]

न्यायाधीशोंके रूपमें आपका काम यह देखना है कि मैं न्यायसंगत बात कहता हूँ या नहीं। मेरा कर्तव्य आपके सम्मुख सत्यको ही प्रस्तुत करना है।

'मुझपर बहुत-से लोगोंने आरोप लगाये हैं। एक आरोप यह है कि मैं सब प्रश्नोंकी छानबीन करता हूँ और गलतको सही साबित करता हूँ और लोगोंको भ्रमित करता हूँ। इन आरोपोंको लगानेवाले लोग शक्तिमान हैं। उन्होंने कहा है कि मैं अपने पूर्वजोंके धर्मका पालन नहीं करता। उन्होंने ऐसी बातें आपके कानोंमें आपके बाल्यकालसे भर-भरकर आपको [मेरे खिलाफ] उत्तेजित किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने ये बातें मेरे पीठ-पीछे की हैं। इस कारण मैं आपके सम्मुख अपनी सफाई पेश नहीं कर सका। उन्होंने ईर्ष्यावश या दुष्टतावश आपसे [झूठी] बातें करके आपके मनमें जो उत्तेजना पैदा कर दी है, मैं उसे आपके मनसे निकाल देना चाहता हूँ। किन्तु मैं जानता हूँ कि यह कार्य कठिन है । फिर भी मुझे जो कहना उचित है उसे मैं कहूँगा। परिणाम जो प्रभु चाहें सो हो।

"वे जो कुछ कहते हैं उसका सार मैंने ऊपर बताया। इसके अतिरिक्त वे नाटकोंमें[१] मेरी हँसी करते हैं और उनमें यह दिखाते हैं कि मैं वायुमें उड़नेका प्रयोग करता हूँ। मैं इसके बारेमें कुछ नहीं जानता। मैं यह नहीं कहता कि वायुमें उड़ा नहीं जा सकता। कोई उसका जानकार हो तो वह बेशक वैसा प्रयोग करे। किन्तु मुझे इसका कोई ज्ञान नहीं है। फिर भी मेलीटस मुझपर ऐसा आरोप करता है। इस महाजन-मण्डलमें से आप अनेक लोग मेरे सम्पर्कमें हमेशा आते रहे हैं। आप एक-दूसरेसे पूछकर देखें कि क्या मैंने किसी दिन किसीसे ऐसी बात भी की है। और यदि आप सब यह कह सकें कि मैंने किसीसे ऐसी बात नहीं की तो आप समझ सकते हैं कि जैसे यह आरोप असत्य है वैसे ही अन्य आरोप भी असत्य होने चाहिए।

"फिर, मेरे विरोधी कहते हैं कि मैं लोगोंको शिक्षा देता हूँ और उनसे उसके बदले पैसा लेता हूँ। यह आरोप भी असत्य है। यह बात सत्य भी होती तो मैं इसमें कोई बुराई नहीं समझता। हममें कई शिक्षक हैं, जो अपना पारिश्रमिक लेते हैं। यदि वे अच्छी तरह शिक्षा दें और उन्हें पैसा मिले तो मैं इसमें कोई असम्मान नहीं मानूँगा। हमारे पास पशु हों तो हम उनको सिखानेके लिए मनुष्य रखेंगे और उनको पैसे देंगे। तब क्या हम अपने बाल-बच्चों को अच्छा बनना, नागरिकोंके रूपमें अपने कर्तव्योंका पालन करना न सिखायें? और यदि उनको सन्मार्गपर ले जानेवाला शिक्षक मिले तो हम उसको धन और मान क्यों न दें? किन्तु मेरे लिए तो इस प्रकार शिक्षा देना सम्भव ही नहीं हुआ।

"तब आप कहेंगे, 'यदि तुझमें कोई दोष नहीं है तो तेरे ऊपर इतने आरोप क्यों लगाये जाते हैं? यदि तूने लोगोंको विशेषरूपसे प्रभावित न किया हो तो ये आरोप अन्य लोगों पर क्यों नहीं लगाये जाते, तेरे ऊपर ही क्यों लगाये जाते हैं?' आपका ऐसा पूछना अनुचित नहीं होगा। मैं यह बतानेका प्रयत्न करूँगा कि मेरे ऊपर आरोप क्यों लगाये गये हैं। आपको कदाचित् मेरी बात व्यंग्यपूर्ण प्रतीत हो, फिर भी आप यह विश्वास रखें कि मैं जो सत्य है वही कहूँगा। वे मुझपर आरोप लगाते हैं, इसका कारण यह है कि मेरे पास अमुक ज्ञान है। 'यह ज्ञान कैसा है,' यह आप पूछेंगे तो मैं कहूँगा कि यह ज्ञान भले मानवीय ही हो तथापि हमारे देवताने भी कहा है, कि यह ज्ञान जितना मुझमें है उतना अन्य किसीमें नहीं है।

 
  1. अभिप्राय एरिस्टोफ़ेनीजके नाटक क्लाउड्स (बादल), से है, जिसमें सुकरातको 'नगर-राज्य' की जड़ खोदनेवाला दिखाया गया है।