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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

"ऐसी देववाणी[१] फिर भी मैंने उसपर तुरन्त विश्वास नहीं किया। इसलिए हममें जो सबसे अधिक ज्ञानी कहा जाता था, मैं उसके समीप गया। मैंने उससे कुछ प्रश्न पूछे। उसपर से मैंने यह जाना कि उसे तो ज्ञानका दम्भमात्र था। मुझमें ज्ञानका दम्भ नहीं था, इसलिए मुझे ऐसा लगा कि मैं इस हदतक उसकी तुलनामें अधिक ज्ञानी हूँ। क्योंकि जो व्यक्ति अपने अज्ञानको जानता है कहा जा सकता है कि वह अपने अज्ञानको न जाननेवाले व्यक्तिकी तुलनामें ज्ञानी है। किन्तु जब मैंने पूर्वकथित ज्ञानीको उसका अज्ञान बताया तब मैं उसकी आँखोमें खटका। फिर मैं दूसरे ज्ञानीके समीप गया। उसने भी ज्ञानका दम्भ किया-- अपने अज्ञानको ढँका। मैंने उसको यह बात बताई, इसलिए वह भी मेरा बैरी बन गया। इस प्रकार मैं बहुत-से लोगोंके समीप गया और उन सभीने अपने अज्ञानको छिपाया। मैंने उन सभीका दम्भ उन्हें बताया और इससे उनके मनमें मेरे प्रति कटुता आ गई। अपने अनुभवसे मैंने यह जाना कि जहाँ ज्ञानका जितना अधिक दम्भ था वहाँ वस्तुतः उतना ही अधिक अन्धकार था। मैंने यह भी देखा कि हम बहुत अज्ञानी हैं, इसका भान होना ही सच्चा ज्ञान है।

"मैं बहुतसे कवियोंके-कवि और बहुत-से कलाकारोंके समीप गया। मैंने देखा कि बहुत-से कवि अपनी कविताको नहीं समझा सके। कलाकारोंकी कला निःसन्देह ऊँची थी; किन्तु कलाके घमण्डसे उन्होंने यह मान लिया था कि अन्य विषयोंमें भी उनके पास अन्य लोगोंकी तुलना में अधिक ज्ञान है। इस प्रकार वे सभी गोता खा रहे थे। मैंने देखा कि मुझे अपनी अज्ञानावस्थाका भान उन सबकी अपेक्षा अधिक था।"

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-४-१९०८

९४. मिस्रके प्रख्यात नेता [३]

मुस्तफा कामेल पाशाकी मृत्युकी खबर फैलते ही लोगोंमें व्याप्त शोककी भावना और उनकी शव-यात्राका मिस्रके समाचारपत्रोंमें प्रकाशित विवरण इस प्रकार है:

मुस्तफा कामेल पाशाकी मृत्युकी खबर फैलते ही शोककी गहरी छाया फैल गई और असंख्य लोग 'लीवा' पत्रके दफ्तरमें जमा होने लगे। बूढ़े लोगतक नन्हें बालकोंकी तरह फूट-फूटकर रो रहे थे। अधेड़ और युवक जोर-जोर से विलाप कर रहे थे। दृश्य इतना शोकजनक था कि पत्थर-जैसा कठिन हृदय भी पिघल जाता।

'लीवा' पत्रके दफ्तरके सामने लोगोंकी भीड़ सारे दिन जमी रही। वहाँ खड़ा किया गया तम्बू शोकमें डूबे लोगोंसे ठसाठस भरा था। मुस्तफा कामेल पाशाके घरसे जनाजा जब उठा उस समयका रोना-पीटना ऐसा हृदयद्रावक था कि उसका वर्णन नहीं हो सकता। जो कड़ी छातीके मालूम होते थे ऐसे पुरुषोंकी आँखोंसे भी चौधार आँसू बहने लगे। स्त्रियों तथा दूसरे लोगोंके रुदनसे बहुत कोलाहल फैल गया था। बताया गया है कि जनाजेपर मिस्रका [राष्ट्रीय] ध्वज लपेटा गया था। रास्तेपर पहुँचनेके बाद कुछ ही देरमें लोग एक जुलूसकी

 
  1. ओरेकल ऑफ डेल्फी।