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मिस्रके प्रख्यात नेता [३]

शक्लमें व्यवस्थित होकर चलने लगे। मुस्तफा कामेल पाशाके स्कूलके विद्यार्थी इस जुलूसके आगे-आगे चल रहे थे; खेदीवके कानून और डाक्टरीके स्कूलोंके विद्यार्थी हाथोंमें काले झंडे लेकर चल रहे थे। दूसरे स्कूलोंके विद्यार्थियोंने भी इस जुलूसमें भाग लिया था। उन सबके हाथोंमें अलग-अलग शोक-चिह्न थे। दूसरे लोगोंको मिलाकर जुलूसमें भाग लेनेवालोंकी कुल संख्या एक लाखसे ज्यादा थी। बताया गया कि यह विशाल जुलूस तीन मील लम्बा था।

लोगोंकी इस भारी भीड़के कारण जुलूसके रास्तेपर गाड़ी आदि वाहनोंका आना-जाना बिलकुल बन्द कर दिया गया था। कहीं-कहीं भीड़ इतनी ज्यादा थी कि लोगोंका चलना भी मुश्किल था। दुर्घटनाएँ रोकने और व्यवस्था बनाये रखनेके लिए घूमनेवाले पुलिसके सिपाहियोंमें से कईकी आँखोंसे आँसू टपक रहे थे। रास्तेकी हर खिड़की और हर छत लोगोंसे भरी हुई थी और जहाँ देखिए वहीं स्त्रियाँ, पुरुष और बालक अपने प्यारे नेताके निधनपर फूट-फूटकर रो रहे थे। यह सारा दृश्य अत्यन्त हृदयद्रावक था।

धीरे-धीरे चलते हुए जुलूस कसाऊनकी मस्जिद तक पहुँचा। वहाँ २० मिनट प्रार्थना करनेके बाद वह फिर आगे बढ़ा। जिस समय वह कब्रिस्तान पहुँचा उस समय शोकमग्न जन-समुदाय समुद्रकी लहरोंकी भाँति चारों दिशाओंसे उमड़कर आता हुआ दिखाई पड़ रहा था। शवको कब्रमें उतारनेमें लोगोंकी झिझकके कारण कुछ देर लगी। दफनकी क्रियाके समय न्याय-विभागके भूतपूर्व प्रमुख इस्माइल पाशा सबरी द्वारा रचित मरसिया पढ़ा गया, जिसे सुनकर लोगोंका हृदय भर आया और वे फफक-फफककर रोने लगे। मरसियाकी कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:

ओ कब्र, तू अपने मेहमानका सम्मानपूर्वक स्वागत कर। वह सारी मिस्री जनताकी आशाओंका आधार था।

तुम्हारे जैसा देशभक्त और उदारमना पुरुष भरी जवानीमें चला गया, यह दुःख हम सहन नहीं कर सकते। तुमने हमें फतहका रास्ता बताया है। तुम देशोन्नतिकी जो इमारत खड़ी कर गये हो हम उसकी रक्षा करेंगे। तुमने रोने-धोनेको कभी प्रोत्साहन नहीं दिया, किन्तु आजके एक दिनके लिए शोकमें डूबनेकी छुट्टी हमें दो। कल सुबह हम चट्टानकी तरह दृढ़ होकर तुम्हारा छोड़ा हुआ काम उठा लेंगे।

उत्तर-क्रियामें भाग लेनेवालोंमें अनेक प्रसिद्ध व्यक्ति उपस्थित थे।

मिस्रकी स्वतन्त्रताके आकांक्षियोंके लिए १० फरवरीका दिन अतिशय शोकका दिन था। काहिरा शहरके इतिहासमें ऐसे दारुण शोककी कोई दूसरी घटना पहले कभी घटित नहीं हुई। लोग कहते हैं कि जिन्होंने उनकी शव-यात्राका जुलूस देखा है वे उसे लम्बे समय तक भूल नहीं सकेंगे।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-४-१९०८