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९५. अंग्रेज सत्याग्रही महिलाएँ

हम भारतीय सत्याग्रहियोंकी लड़ाईकी तुलना मताधिकारके लिए अथक प्रयत्न करनेवाली अंग्रेज महिलाओंकी लड़ाईके[१] साथ हमेशा करते आये हैं। ये बहादुर अंग्रेज महिलाएँ अपनी यह लड़ाई अब भी चला रही हैं। उन्होंने अपनी लड़ाई हमसे पहले शुरू की थी और कहा नहीं जा सकता कि वह कब पूरी होगी। किन्तु उनकी हिम्मत और दुःख सहनेकी शक्ति अपार है। अपने अधिकारोंकी प्राप्तिके लिए अनेक महिलाएँ जेल हो आई हैं। उनमें से एकने अपना जेलका अनुभव एक अंग्रेजी समाचारपत्रमें प्रकाशित किया है। यह अनुभव हमें शरमानेवाला और प्रोत्साहन देनेवाला भी है। उनके कष्टों की तुलनामें हमारा कष्ट तो कोई चीज ही नहीं है। यह महिला लिखती है:

हमें पहले एक चौकमें बन्द किया गया था। उसमें से निकालनेके बाद हम लोगों से हमारी उम्र, नाम, स्थान आदिके बारेमें प्रश्न किये गये। इन प्रश्नोंके द्वारा मानो जेलका आतिथ्य भोगनेके लिए आये हुए लोगोंका सार्वजनिक सत्कार किया जाता है। हमारे नाम-धाम आदि लिखे जा चुके, उसके बाद हम जेलकी पोशाक पहननेके लिए गये। पोशाकका कपड़ा बहुत खुरदरा था। पहले हमें एक विशेष प्रकारका कपड़ा पहनकर कुछ देर नंगे पाँव खड़े रहना पड़ा। उस समय हमारे पास घरके जो कपड़े और गहने आदि थे उनकी सूची बनाई गई और फिर हमारा वजन किया गया। उसके बाद हमारे बाल खोलकर जाँच की गई कि उनमें जूँ तो नहीं है। फिर हमसे थोड़ी देरके लिए अपने पाँव मामूली गरम पानीमें डाल रखनेके लिए कहा गया। बादमें हमने जेलकी अपनी पोशाकके बाकी कपड़े पहने। इन कपड़ोंपर एक पट्टा बाँधा गया, जिसपर हमारा नम्बर लिखा हुआ था। रूमालकी जगह हमें कपड़ेका एक-एक टुकड़ा दिया गया। चूँकि हमारे कपड़ोंमें कोई जेब नहीं थी, इसलिए इस टुकड़ेको पिनसे कपड़ेमें अटकाकर लटका लिया। यह टुकड़ा हम आठ दिनमें एकसे ज्यादा बार नहीं धो सकते थे। यानी, राज्यके मेहमान (जेलवासी) को सरदी हो जाये, तो उसके लिए कोई सुविधा नहीं थी।

हमें साइकल सवारोंके मोजों ('साइकलिंग स्टॉकिंग्ज') जैसे मोजे दिये गये। वे घुटनों तक नहीं पहुँचते थे। इसी तरह उन्हें ऊपर बाँध रखनेके लिए बन्द भी नहीं दिये गये थे। जेलके आसपास आधे घंटेके लिए जब हम घूमते थे, तब ये मोजे एकदम खिसक जाते थे। यह बहुत भद्दा मालूम होता था। हमें जो जूते दिये गये थे, वे बहुत ही सख्त चमड़ेके थे। उनपर बार-बार टाँके लगाये गये थे, और थिगड़े भी लगे थे। इसलिए उनका वजन बहुत ज्यादा हो गया था। उनके तलोंमें ठोंकी गई कीलें इतनी ज्यादा बाहर निकल आई थीं कि पाँवोंमें और मौजोंमें कुछ ही समयमें कितने ही छेद पड़ गये। इसके खिलाफ जब हमनें अपनी निरीक्षिकासे शिकायत की तब उसने पुराने जूतों का एक ढेर हमारे सामने रख दिया और कहा कि इनमें जो जोड़े कम कीलोंवाले हों, वे ले लो।

 
  1. देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ३१-३२, ९२, ३५४, ४०२।