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९६. नेटालके गवर्नर और भारतीय

नेटालके गवर्नर महोदय यहाँ आनेके बाद पहली बार भारतीय प्रश्नके सम्बन्धमें बोले हैं। नेटाल खेत-मालिक संघकी वार्षिक सभामें भाषण देते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय मजदूरोंका उपयोग करनेके बजाय काफिर मजदूरोंका उपयोग करना चाहिए। फिर गवर्नर महोदयने कहा कि यदि वे ऐसा न करेंगे तो निर्बल और काले लोगोंके प्रति न्याय-दृष्टि रखनेका गोरोंका जो स्वभाव है, उसके अनुसार वे नेटालवासी भारतीयोंको न्याय न दे सकेंगे।

इस भाषणसे दो विचार उत्पन्न होते हैं। गवर्नरके कथनका आशय ढूँढ़नेपर मालूम होता है कि उन्होंने जो भाषण दिया है वह भारतीयोंके हितकी दृष्टिसे दिया है। फिर उन्होंने गोरोंको चेतावनी दी है कि वे यदि अब भारतीय मजदूरोंको बुलायेंगे तो नेटाल भारतीयोंके हाथोंमें चला जायेगा। सर मैथ्यू नैथनका विचार भारतीयोंके प्रति न्याय करनेका है, उसके लिए हम उनका आभार मानते हैं।

किन्तु हमारा काम तो यह है कि अच्छे और बुरे दोनोंका विचार करें और उनको तौलें। कुछ अच्छा देखें तो हम फूलकर कुप्पा न हो जायें। कुछ बुरा दिखाई दे तो निराश होकर क्रोधमें न भर जायें। इस सिद्धान्तके अनुसार विचार करें तो गवर्नरका अन्तिम कथन कुछ अधिक जान पड़ता है। गवर्नर महोदय कहते हैं कि निर्बल और काले लोगोंके प्रति न्याय करना गोरोंका स्वभाव है। इसका अर्थ यह हुआ कि भारतीय निर्बल हैं और अभी निर्बल ही रहेंगे। गोरे सदा न्याय करते आये हैं और अभी करते रहेंगे। वे भारतीयोंको निर्बल मानते हैं, इसमें हम उनका दोष नहीं समझते; क्योंकि हम निर्बल हो गये हैं और निर्बल बने रहते हैं इसलिए लोग अँगुली उठायेंगे ही। किन्तु गवर्नरको यह विचार गोरोंके सम्मुख रखनेका अधिकार न था । यह उनको शोभा देनेवाला नहीं था। इससे हम गोरोंकी दृष्टिमें और भी निर्बल बनते हैं। इसका उपाय हमारे हाथमें ही है। हमें ऐसा सोचना चाहिए कि हम निर्बल थे, किन्तु अब वैसे नहीं हैं, या हैं तो अब नहीं रहेंगे। और चूँकि हम सबल हैं इसलिए हम अपने अधिकारों और अपने सम्मानके लिए लड़ेंगे।

ऐसा सोचने में 'सबल' का अर्थ 'शरीर से बलवान' और 'लड़ेंगे' का अर्थ 'बन्दूक और तलवारसे लड़ेंगे' नहीं करना है। शरीरसे बलवान होनेकी आवश्यकता है। भारतीय तलवार और बन्दूक चलाना सीखना चाहें तो भले ही सीखें। किन्तु यदि उनके हाथोंमें सत्यरूपी तलवार हो तो वे सबल ही हैं, और तोपधारियोंको भी पछाड़ सकेंगे। हममें शरीर-वल नहीं है, इसलिए वे हमें निर्बल कहते हैं, ऐसा न माननेका बड़ा कारण यह है कि काफिर गोरोंके मुकाबले शरीरमें बहुत बलवान हैं फिर भी गोरे उन्हें निर्बल कहते हैं; क्योंकि उनमें बुद्धि कम है, उनमें अक्षर-ज्ञान नहीं है और उनमें कला नहीं है। हम कह सकते हैं कि गोरोंमें भले ही शरीर-बल हो, कला हो, कारीगरी हो, और अक्षर-ज्ञान हो; फिर भी यदि हममें सत्य होगा तो हम उनको हरा सकेंगे। जितनी आवश्यकता अक्षर-ज्ञान आदिकी है उतनी हममें स्वभावतः आ जायेगी। [इन गुणोंकें] इस तरह आनेके सैकड़ों उदाहरण मिल सकते हैं।