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बेलागोआ-बेके भारतीय

किन्तु, यदि हम सत्यको ग्रहण करके सबल होना और अपने को सबल कहलाना चाहते हों तो हम तुरन्त देख सकेंगे कि नेटालमें इस समय जितने भारतीय हैं उतने ही काफी हैं। उपनिवेशके इस विचारसे हमारा विचार मिल जायेगा। कानूनके मुताबिक जो आ सके वह भले ही आये; किन्तु कानूनके विरुद्ध लोगोंको लाना बन्द करना चाहिए और गिरमिटियोंका आना बन्द होनेसे हमें प्रसन्न होना चाहिए। यदि इस समय यहाँ आबाद भारतीय अपनी मान-प्रतिष्ठाको प्राप्त कर लेंगे तो शेष लोगोंके कष्ट दूर हो जायेंगे।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-४-१९०८

९७. डेलागोआ-बेके भारतीय

डेलागोआ-बेके भारतीयोंको जागृत होने और जागृत रहनेकी बहुत आवश्यकता है। वहाँ एशियाइयोंके सम्बन्धमें जो विनियम प्रकाशित हुए हैं[१] उनकी ओर हम डेलागोआ-बेके भारतीयोंका ध्यान आकर्षित करते हैं। ये विनियम बहुत समय पहले प्रकाशित हुए थे। इसके सम्बन्धमें हम पहले लिख चुके हैं। अब फिर चेतावनी देना आवश्यक समझते हैं। यदि ये विनियम बहुत समय तक रहेंगे तो बादमें इनका प्रतिकार कठिन होगा। और यद्यपि इनमें पुर्तगाली प्रजाकी रक्षाकी पर्याप्त व्यवस्था है, तो भी उनसे बहुत-से भारतीयोंके, जो पुर्तगाली प्रजा नहीं हैं, अधिकार मारे जाते हैं। यह कानून ऐसा है कि इसके अन्तर्गत कई तरहके पास सदा साथ रखने पड़ेंगे। और अन्य बहुत-सी अड़चनें भी हैं।

हमें एक तार मिला है, जिससे मालूम होता है कि चीनी लोग इस कानूनके विरुद्ध अच्छी टक्कर ले रहे हैं। चीनियों [ के संघ ] के अध्यक्ष श्री क्विन इसी कारण डेलागोआ-बे गये हैं। यह लिखते समय श्री पोलकको उनके साथ भेजनेकी कोशिशें हो रही हैं। हमें आशा है कि यदि श्री पोलक डेलागोआ-बे जायेंगे तो भारतीय नेता उनकी सहायता करेंगे और वहाँके कानूनके विरुद्ध जो-कुछ करना उचित हो वह करेंगे। किन्तु हम यह माने लेते हैं कि कदाचित श्री पोलक न जा सकें तो भी वे कानूनके विरुद्ध लड़ेंगे।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, १८-४-१९०८
 
  1. देखिए खण्ड ७, पृष्ठ ४४७ और ४५०।