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९८. नेटाल कांग्रेसका कर्तव्य

लोबिटो बेके भारतीयोंकी हालतका हृदयविदारक विवरण हम दूसरी जगह दे रहे हैं। वे नेटालमें हैं।[१]यह दूरी इतनी ही है कि यदि डर्बनके भारतीय उस तरफ कंकड़ फेंकें तो वह उनके बीचमें जाकर गिरेगा। जान पड़ता है, सरकारने उन्हें ( क्वारंटीन ) [ सूतकके दिन बितानेके लिए पहाड़ी टेकरी ] ब्लफमें भेज दिया है और अन्तमें भारत भेजनेका सोच रही है।

इन भारतीयोंके शरीरपर एक लत्ता भी नहीं है, ऐसा कहा जाता है। श्री दाउद मुहम्मद, श्री दाउद उस्मान तथा श्री आंगलिया आदि सज्जनोंको चाहिए कि वे तुरन्त उचित उपाय करें। जो कांग्रेसके पदाधिकारी नहीं हैं किन्तु फिर भी जो आगे बढ़कर काम करनेवाले हैं— जैसे कि श्री पारसी रुस्तमजी--उन्हें यह काम उठा लेना चाहिए। करना यह है कि सत्ताधिकारियोंकी आज्ञा लेकर ये लोग उनसे मिलें, और उनकी राम-कहानी सुनें। यदि काम मिलनेकी सम्भावना हो तो उनको नेटालमें रखनेका प्रार्थनापत्र दिया जाये, यदि वे भूखों मरते हों तो चन्द्रा करके उनके लिए भोजनका प्रबन्ध किया जाये, यदि वे वस्त्रहीन हों तो तन ढाँकनेके लिए कपड़ा प्राप्त किया जाये। यह केवल कांग्रेसका ही काम नहीं है, वरन् जिसे अवकाश हो, ऐसे प्रत्येक भारतीयका काम है। थोड़ा-सा श्रम करनेसे बड़ा परमार्थ हो सकेगा। कांग्रेसका तो यह विशेष कर्तव्य है। इससे दीन-दुखियोंकी आत्मा दुआ देगी और इसीसे कांग्रेसके कर्ता-धर्ताओंका भी, जो भारतीयोंके न्यासी हैं, कल्याण होगा। हम आशा करते हैं कि इस काममें तनिक भी ढील नहीं की जायेगी।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन', १८-४-१९०८
 
  1. पुर्तगाली आफ्रिकाके लोबिटो-बेके बेनग्वेला रेलवे मार्गके निर्माण के लिए सन् १९०६ में स्टोन नामक एक अंग्रेज इंजीनियरने नेटालके भारतीयोंकी भरती की। तत्कालीन इंडियन ओपिनियन के समाचारोंसे विदित होता है कि वहाँके हालात बहुत खराब थे। पीनेको साफ पानीकी जगह गन्दा और तेलमिश्रित पानी मिलता था; सो भी जैसे-तैसे। उन्हें रद्दी चावल और खराब दाल मिलती थी। परिणाम-स्वरूप पहुँचनेके तीन महीनोंके भीतर लगभग आधे मजदूर मर गये। करीब ११ महीनोंके बाद झुंडके-झुंड लोग जगह छोड़कर जाने लगे। ५०० लोग मार्च १९०८ में और ४२९ लोग अप्रैलमें नेटाल पहुँचे। अप्रैलवाले लोगोंको भारत भेजनेके पहले क्वारंटीनमें ब्लफ भेजा गया था। उनकी हालत बड़ी दयनीय थी। नेटाल भारतीय कांग्रेसके दाउद मुहम्मद ब्लफ जाकर उनसे मिले और अप्रैलमें ही कांग्रेसने उपनिवेश-सचिवको मैरित्सबर्गमें तार देकर पूछा कि भारतमें उनका क्या प्रबन्ध किया गया। कांग्रेसके कर्ता-धर्ताओंने उनसे फिर मिलनेका प्रयत्न किया, किन्तु अनुमति नहीं मिली। देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ४०३, और खण्ड ७, पृष्ठ १११।