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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री अलीभाई आकुजी तथा श्री अलीभाई मुहम्मदने भी श्री कुवाडियाकी तरह अधिनियम सम्बन्धी संघर्षमें बहुत ही प्रशंसनीय भाग लिया था। दोनों महोदय भी देश जानेके लिए रवाना हो गये हैं। श्री अलीभाई आकुजी तथा दूसरे कानमिया नेताओंने यदि प्रयत्न न किया होता तो कानमियोंको समझाना बहुत कठिन हो जाता। मेरी जानकारीके अनुसार श्री अलीभाई आकुजी पहले ही देश जानेवाले थे, तथापि वे संघर्षके विचारसे ही रुक गये। मैं कामना करता हूँ कि श्री अलीभाई आकुजी तथा श्री अलीभाई मुहम्मदको खुदा दीर्घायु करे और वे भी समाजकी सेवा आदि अच्छे काम करते रहें।

त्रिशूल

हमारे देशमें त्रिशूल नामक शस्त्रकी मार बहुत कष्टदायक मानी जाती है। यहाँकी नगर-पालिकाका इरादा भारतीयोंको वैसा ही त्रिशूल भोंकनेका है। सोफियाटाउनमें काफिरोंके मुकदमेमें[१] मात खानेपर भी इस नगरपालिकाको लाज नहीं आई। किन्तु हम लोगोंमें कहावत है कि बेशरमके नाक होती ही नहीं। उसी प्रकार इस नगरपालिकाके भी नाक नहीं है ऐसा जान पड़ता है। अंग्रेजीमें भी कहावत है कि नगरपालिकाके आत्मा होती ही नहीं, और जिसके आत्मा न हो उसे लाज-शर्म कैसी। नगरपालिकाने सोचा है कि स्थानिक सरकारसे तीन बातें माँगी जायें:

१. नगरपालिका द्वारा निश्चित स्थानोंके सिवा दूसरी जगह काले लोग न रह सकें, ऐसी सत्ता प्राप्त करना।

२.नगरपालिका जिसे पसन्द करे उसके सिवाय दूसरी जगह काले लोगोंको पट्टपर, खरीद कर या किसी दूसरी रीतिसे जमीन मिलनेपर पाबन्दी लगानेकी सत्ता प्राप्त करना।

३.काफिरोंको पैदल पटरियोंपर चलनेकी मनाही करनेके विषयमें अधिक सत्ता प्राप्त करना।[२]

मुझे ऐसा अधिकार मिलनेकी तनिक भी सम्भावना दिखाई नहीं देती। फिर भी ट्रान्सवालकी बड़ीसे-बड़ी नगरपालिका गम्भीरतापूर्वक ऐसा सोच सकती है, यह बात विचारणीय है। अपने दुश्मनको पहचान लेनेमें आधी विजय निहित है---इस सिद्धान्तके अनुसार हमें नगरपालिकाके विचारको मनसे भुलाना नहीं चाहिए। ऐसा कानून नहीं बन सकता, ऐसा जो मैं कहता हूँ उसका कारण है अपने समाजके ऊपर मेरा विश्वास। जिस कौमने अभी-अभी एक बड़ी विजय प्राप्त की है, जिसने १६ महीने तक सत्याग्रह चलाया है, वह पीछे हटनेवाली थोड़े ही है। तब फिर जोहानिसबर्गकी नगरपालिका चाहे जैसे विचारोंका सेवन करे वे उसके मनमें ही रह जायेंगे। जिस कौमके ऊपर इस प्रकारका त्रिशूल उठाया गया है, उस कौमको हमेशा सावधान रहना चाहिए। इसीमें हमारी समझदारी है और इसीमें हमारी जीत होगी।

परवाना

यह लेख पाठकोंके हाथमें पहुँचते-पहुँचते १९ अथवा २० तारीख हो जायेगी। जिन भारतीयोंने अभीतक व्यापारी परवाने न लिये हों, इसके बाद उनके पास केवल ११ दिन

 
  1. देखिए "जोहानिसबर्गफी चिट्ठी", पृष्ठ १७०।
  2. मूल प्रस्ताव १८-४-१९०८ के इंडियन ओपिनियनमें दिया गया था।