पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/२२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८९
सत्याग्रह

बच रहेंगे। इस बीच वे परवाने ले लें, ऐसी उनको मेरी विशेष सलाह है। मैं यह नहीं कह सकता कि इसके बाद नहीं ही मिलेंगे, किन्तु हमारा कर्तव्य है कि हम अपने हिस्सेका काम बराबर पूरा करें। यह भी याद रखा जाये कि जिन्होंने स्वेच्छापूर्वक पंजीयन नहीं कराया है उन्हें ३० जून तक का परवाना मिल सकता है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-४-१९०८

१०१. सत्याग्रह

इनामी निबन्ध

प्रस्तावना

जिस समय ट्रान्सवालकी लड़ाई जोरपर थी, उस समय हमने सत्याग्रहके मूलमें निहित नीतिके विषयमें लेखोंकी माँग की थी। पाठकोंको याद होगा कि उसके लिए हमने १० पौंडका इनाम भी घोषित किया था। इनामी लेख लिखनेवाले केवल चार व्यक्ति थे--२ गोरे और २ भारतीय। उनमें से इनामके लायक कौन है—इसकी जाँचका काम श्री डोकको सौंपा गया था। लेखोंकी जाँच करते समय श्री डोकके पास लेखकोंके नाम नहीं थे। अपनी जाँचके फलस्वरूप उन्होंने श्री मॉरिसको इनामके लायक ठहराया। तदनुसार हमने उन्हें १० पौंड भेज दिये।

स्थानकी कमीके कारण हम आजतक उनका लेख प्रकाशित नहीं कर सके। अब हमें समय और स्थानकी सुविधा है, इसलिए हम उसे प्रकाशित कर रहे हैं। पाठक श्री मॉरिसका मूल लेख अंग्रेजी विभागमें पढ़ सकते हैं। नीचे हम उनके लेखका अनुवाद दे रहे हैं:[१]

लेख लिखनेवालोंकी संख्या कम रही, इससे हम थोड़े निराश हुए। श्री मॉरिसका लेख आकर्षक और बहुत गहरा है, ऐसा हम नहीं कहते; किन्तु जो चार लेख हमारे पास आये उनमें उनका लेख उत्तम था, यह बात निश्चित है। इसके सिवा हम यह भी कह सकते हैं कि श्री मॉरिसका लेख कुल मिलाकर पठनीय है। दक्षिण आफ्रिकामें ऐसा लेख लिखनेवाला एक भारतीय निकल आया, यह हमारे लिए खुशीकी बात है। श्री मॉरिस भारतीय ईसाई हैं, इसलिए उन्होंने अपने लेखमें जो उदाहरण या प्रमाण आदि दिये हैं, वे ईसाई पुस्तकोंसे लिये हैं। इस बातको हम स्वाभाविक मानते हैं। हमारी कामना है कि श्री मॉरिसका लेख पढ़कर सत्याग्रहके विषयमें लोगोंका उत्साह बढ़े और इस किस्मकी लड़ाईसे वे ज्यादा परिचित हों।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-४-१९०८
 
  1. इस गुजराती अनुवादका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है। मूल अंग्रेजी लेखके अनुवादके लिए देखिए परिशिष्ट ३।