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एक सत्यवीरकी कथा [३]

सु०--आपने मुझपर बहुत बड़ा दोष लगाया है। आप जो कहते हैं वह बात घोड़ों-पर भी लागू होती होगी। क्या आप ऐसा कहेंगे कि बहुत-से लोग उनको सुधार सकते हैं और थोड़े ही उनको बिगाड़ते हैं? ठीक देखें तो क्या ऐसा नहीं कि घोड़ोंको सिखानेवाले बहुत ही कम होते हैं और अन्य तो इस विषयमें अनभिज्ञ होते हैं? क्या आप यह स्वीकार नहीं करते कि यही नियम अन्य प्राणियोंके सम्बन्धमें भी लागू होता है? मुझे तो लगता है कि यह बात आपको स्वीकार करनी ही पड़ेगी, क्योंकि यह बिलकुल स्पष्ट है। मैं तो यह देखता हूँ कि मनुष्योंके लिए पृथक् नियम है, यह कहकर आप बिना समझे मुझपर आरोप लगाते हैं। फिर, क्या आप यह स्वीकार नहीं करेंगे कि जो लोग दुर्जनोंकी संगतिमें ज्यादा समय रहते हैं उनपर उनका [दुर्जनोंका] प्रभाव पड़ता है?

मे०--यह तो मैं स्वीकर करूँगा।

सु०--तब आप यह कहेंगे कि कोई-कोई व्यक्ति स्वतः ही अपना अहित करना चाहते हैं?

मे०--यह तो मैं नहीं कह सकूँगा।

सु०--तब यह बताइए कि मैं युवकोंको जान-बूझकर बिगाड़ता हूँ या अनजानमें?

मे०--मैं कहता हूँ कि आप उन्हें जान-बूझकर बिगाड़ते हैं।

सु०--यह आप कैसे कह सकते हैं? आप युवक हैं। मैं बूढ़ा हूँ। क्या आप मानते हैं कि मैं इतना भी नहीं समझ सकता कि मैं दूसरोंको बिगाडूँगा तो उसमें स्वयं मेरा ही अधिक अहित होगा? यह आप पहले स्वीकार कर चुके हैं।[१] क्योंकि हमने देखा कि दुर्जनोंकी संगति में रहने वाला दुर्जन बन जाता है। कोई नहीं मानेगा कि मैं इस प्रकार अपनी हानि करना चाहता हूँ। और यदि मेरा यह तर्क ठीक हो तो फिर स्पष्टतः ही बिगाड़नेका आरोप समाप्त हो जाता है। अब मान लीजिये कि मैं अनजानमें बिगाड़ता हूँ। यदि यह बात थी तो मुझे शिक्षा देना आपका कर्तव्य था। आपने तो मुझे सुधारनेका प्रयत्न भी नहीं किया। आप मेरे समीप भी नहीं आये। मुझे तो आपने दण्ड दिलानेके लिए अकस्मात् [ यहाँ ला ] खड़ा किया है।[२] इस प्रकार मेलीटसने जो-कुछ कहा उससे प्रकट होता है कि उन्होंने किसी दिन गम्भीर विषयोंपर विचार नहीं किया है। अब यह देखिए कि मैं किस प्रकार युवकोंको बिगाड़ता हूँ। मेलोटस, आप यह कहते हैं कि हमारा नगर जिन देवताओंको मानता है, मैं उसे उनको न मानने की सीख देकर बिगाड़ता हूँ?

मे०--मैं निस्सन्देह यही कहता हूँ।

सु०--तब आपका कहना क्या है? नगर जिन्हें मानता है मैं उसे उनको न माननेकी सीख देता हूँ या अन्य देवताओंको मानने की सीख देता हूँ?

मे०--मैं तो यह कहता हूँ कि आप किसी भी देवताको नहीं मानते।

सु०--वाह! मेलोटस! आप तो यह कहते हैं कि समस्त नगर सूर्य और चन्द्रको मानता है, किन्तु मैं नहीं मानता।

मे०--मैं तो यही कहता हूँ कि आप सूर्यको पत्थर और चन्द्रमाको मिट्टी मानते हैं।

 
  1. इससे पहले सुकरातने कहा था कि "बुरे नागरिक अपने पड़ोसियोंको हानि पहुँचाते हैं।" इससे उसने यह निष्कर्ष निकाला कि "अगर मैं अपने किसी साथीको बदमाश बनाता हूँ तो हो सकता है, वह किसी न किसी तरह मुझे ही क्षति पहुँचाये"। गांधीजीके सारांशमें दलीलका यह अंश नहीं दिया गया है।
  2. आगे दो वाक्य महाजन-मण्डलसे कहे गये हैं।