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पत्र: उपनिवेश-सचिवको

इस सम्बन्धमें ६००० लोगोंकी एक विशाल सभामें भाषण करते हुए मुस्तफा कामेल पाशाने घोषित किया था कि यह दल मिस्रके निवासियोंको उनकी वर्तमान स्थितिके प्रति जागरूक बनायेगा, वहाँकी जनता में राजनीतिक चेतना पैदा करेगा और उसके दोनों वर्गोंमें एकता तथा शान्ति की स्थापना करनेका मार्ग अपनायेगा। उसका मुख्य उद्देश्य यह है कि अन्तमें मिस्रके शासनका अधिकार मिस्री लोगोंके प्रतिनिधियोंको मिलना चाहिए; जिस तरह यूरोपके देशोंमें सर्वोपरि सत्ता संसदके हाथमें है उसी तरह यहाँ भी संसदको सर्वोपरि सत्ता होनी चाहिए; और मिस्त्रके आन्तरिक शासनकी हद तक उसे ऐसी पूर्ण स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए, जिसपर इंग्लैंडका कोई नियन्त्रण न हो।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-४-१९०८

१०४. पत्र: उपनिवेश-सचिवको[१]

[ जोहानिसबर्ग
२५ अप्रैल, १९०८ के पूर्व ]

माननीय उपनिवेश-सचिव
प्रिटोरिया
महोदय,

मुझे मेरे संघकी समितिने आदेश दिया है कि स्वर्ण अधिनियमके मसविदेके सम्बन्धमें, जिसे सरकार संसदकी अगली बैठकमें पेश करनेका इरादा रखती है, उसका मन्तव्य सरकारके समक्ष पेश कर दिया जाये।

मेरी समितिकी नम्र रायमें उक्त कानूनका यह मसविदा ब्रिटिश भारतीयोंपर मौजूदा कानूनमें पाई जानेवाली निर्योग्यताओंसे कहीं अधिक सख्त निर्योग्यताएँ लादता है। मेरी समितिको यह आशा थी और यह आशा उसने अब भी छोड़ी नहीं है कि वह जिस समाजका प्रतिनिधित्व करती है, उसकी निर्योग्यताओंके बोझको सरकार बढ़ानेके बजाय कुछ कम ही करेगी।

मेरी समिति चाहती है कि मैं सरकारका ध्यान खासकर निम्नलिखित मुद्दोंकी ओर खींचूँ:

१. मसविदेमें "रंगदार व्यक्ति" की व्याख्यामें "कुली" शब्दका प्रयोग कायम रखा गया है। उपनिवेशको वर्तमान भारतीय आबादीके लिए प्रयुक्त नामके रूपमें यह शब्द संतापजनक है, क्योंकि ट्रान्सवालमें, शब्दके सही अर्थमें, यदि कोई 'कुली' हों तो वे बहुत ही थोड़े हैं। इसके सिवा, आफ्रिकाके वतनियों और एशियाइयों, ब्रिटिश प्रजा और ब्रिटिशेतर प्रजाको[२] एक ही श्रेणीमें रखना ब्रिटिश भारतीयोंके विशिष्ट स्थानकी उपेक्षा करना है।

८-१३
 
 
  1. यह पत्र २५-४-१९०८ के इंडियन ओपिनियन में "ट्रान्सवालका मसविदा-रूप स्वर्ण-अधिनियम: एक महत्त्वपूर्ण विरोध-पत्र" शीर्षक से छपा था।
  2. ट्रान्सवाल्के वे निवासी जो ब्रिटिश साम्राज्यके प्रजाजन नहीं थे।