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१०५. भारतीयोंपर जुर्माना

नेटालके प्रवासी विभागकी रिपोर्टके[१] सम्बन्धमें हम कुछ पहले लिख चुके हैं। अब हमें पूरी रिपोर्ट मिली है, उसे पढ़कर हमारे मनमें और भी कई विचार उठते हैं।

पिछले वर्षमें अधिवासी प्रमाणपत्र आदिके सम्बन्धमें भारतीयोंके २,६६६ पौंड १ शिलिंग नेटालके कोषमें गये। इनमें से ९७९ पौंड १० शिलिंग अधिवासी प्रमाणपत्रके सम्बन्धमें, ६३१ पौंड अतिथि पासके सम्बन्धमें और १,०३६ पौंड नौ-रोहण पासके सम्बन्धमें दिये गये। इसके अतिरिक्त जिन लोगोंने अतिथि पासकी शर्तें तोड़ीं उनके १२० पौंड जब्त किये गये। इस प्रकार थोड़ेसे भारतीयोंके पाससे पिछले वर्षमें बहुत बड़ी रकम चली गई। बहुतसे परवानोंका शुल्क एक पौंड है। इसलिए मानना होगा कि उक्त रकम लगभग दो हजार पाँच सौ भारतीयोंके पाससे गई।

इस प्रकार रुपया जानेसे कैसे बचे? यह प्रश्न पूछने और विचार करने योग्य है। एक तरीका तो यह है कि भारतीयोंमें पूरा जोर आ जाये और सरकारी कानूनका भय खाये बिना, वे परवाना लें ही नहीं। यह उपाय केवल अधिवासी प्रमाणपत्र लेनेवालोंपर लागू हो सकता है। जो निश्चित अवधिके लिए ही आना चाहते हैं उनके बारेमें क्या हो? इसका उत्तर देना कुछ कठिन है। किन्तु मनुष्यकी युक्तिके आगे सब सरल हो जाता है। इस सम्बन्धमें सरकारके पीछे पड़े रहनेकी निरन्तर आवश्यकता है। सरकारको यह बतानेकी आवश्यकता है कि लोग यहाँ आकर उपनिवेशकी रेलों आदिका उपयोग करते हैं, इतना काफी होना चाहिए। इसके अतिरिक्त यह उपाय भी है कि व्यापारी जैसे-हो-वैसे ज्ञान प्राप्त करनेकी तजवीज करें। वे अंग्रेजी भाषा पढ़ेंगे तो उक्त धन कुछ समयमें बच सकता है। अन्तिम उपाय सरकारको छलनेका विचार छोड़ देनेका है। यह अन्तिम उपाय ही खरा और अच्छेसे-अच्छा है।

इसके अतिरिक्त रिपोर्टसे यह भी पता चलता है कि ३,२३६ भारतीयोंको उतरने नहीं दिया गया, इसलिए उन्हें वापस जाना पड़ा। ये सब समुद्रके मार्गसे ही नहीं आये थे; कुछ ट्रान्सवालसे भी आये थे। इस प्रकार नेटालमें प्रवेशका प्रयत्न करनेमें भी बहुत-से धनकी हानि अवश्य ही हुई होगी। इसका उपाय तो हमारे ही हाथमें है। जितना रुपया हम खोटे काम करनेमें बहाते हैं, उसका दसवाँ भाग भी ज्ञान प्राप्त करनेमें खर्च करें तो दक्षिण आफ्रिकामें काली चमड़ीके प्रति जो द्वेष है वह समाप्त हो जाये।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-४-१९०८
 
  1. रिपोर्टके सारांशके लिए देखिए परिशिष्ट ४।