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केपमें प्रवासी कानून

दोनों भारतीय व्यापारियोंको आघात पहुँचानेमें पीछे नहीं रहेंगे, यह हमें समझ लेना चाहिए। भारतीय जाति गिरमिटके विरुद्ध जूझेगी तो उससे व्यापारी सुखी होंगे और गिरमिटियोंकी गुलामी मिटेगी। भारतीय गुलामके रूपमें काम करनेके लिए आयें, इसमें हमारे लिए तनिक भी प्रसन्न होनेकी बात नहीं है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-४-१९०८

१०८. केपमें प्रवासी कानून[१]

हम गत सप्ताह केपके मुकदमेके सम्बन्धमें लिख चुके हैं। अब उसी मुकदमेका पूरा हाल हमें मिला है। इसे हम अपने अंग्रेजीके स्तम्भोंमें छाप रहे हैं। प्रवासी कानूनसे सम्बन्धित एक दूसरा फैसला इसी न्यायालयमें दिया गया है; वह अधिक महत्त्वपूर्ण है। पहले मामलेमें न्यायालयने कानूनकी व्याख्या नहीं की थी। दूसरे मामलेमें उसने कानूनकी व्याख्या की है और यह फैसला केपके समस्त भारतीयोंपर लागू होता है। इसका सार इस प्रकार है:

एक भारतीय[२] को जहाजसे न उतरनेकी आज्ञा दी गई। उसने सर्वोच्च न्यायालयमें मुकदमा चलाया। १९०२ के प्रवासी कानूनके अनुसार दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले भारतीयोंको केपमें जानेकी अनुमति प्राप्त थी। वह भारतीय ऐसा ही था। १९०६ के कानूनके अनुसार जो केपके निवासी हों वे ही भारतीय वहाँ रह सकते हैं। गोरोंको, चाहे वे दक्षिण आफ्रिका किसी भी भागके हों, [ आनेकी ] छूट है। किन्तु १९०६ के कानूनमें ऐसी गुंजाइश है कि जो भारतीय केपसे बाहर जाये, उसको यदि वापस आनेका अधिकार हो तो उसे केपसे जानेका और वापस आनेका पास ले जाना चाहिए।[३] ऐसा पास उक्त भारतीयने नहीं लिया; इसलिए उसका अधिकार रद हो गया। यह सरकारी तर्क था और इसे सर्वोच्च न्यायालयने स्वीकार कर लिया। न्यायालयाने निर्णय देते समय प्रार्थी भारतीयके प्रति सहानुभूति प्रकट की और यह सलाह दी कि सरकारको इस व्यक्तिपर दया करनी चाहिए और इसे रहने की अनुमति दे देनी चाहिए। ऐसी सलाह देनेका कारण उसने यह बताया कि उस व्यक्तिने अनजानमें वापस आनेका पास नहीं लिया, इसलिए उसे माफी मिलनी चाहिए।[४] न्यायालयमें दयाभाव है, यह ठीक है। किन्तु भारतीय यह नहीं चाहते कि उन्हें एक अनुचित कानूनकी अधीनता में रखा जाये और फिर दयाभाव दिखाया जाये। दयाभाव कानूनमें ही होना चाहिए। किन्तु [ हमारी ] कौम तो दयाभावसे पूर्ण कानून नहीं चाहती। केवल न्यायसंगत कानून मिल जाये, तो उसीको वह पर्याप्त मानेगी।

 
  1. देखिए "केपमें महत्त्वपूर्ण मुकदमा", पृष्ठ १८७।
  2. बापन।
  3. देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ३६६।
  4. मूल फैसलेमें कहा गया था: "लेकिन यह एक ऐसा मामला जान पड़ता है जिसमें मंत्री यह सोच सकता था कि प्रार्थीको कुछ गलतफहमी हो गई होगी या उसने बीमारीके कारण कुछ लापरवाही कर दी होगी। क्या इस आधारपर प्रार्थीके प्रति कुछ दयाभाव नहीं दिखाया जा सकता है।"