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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कानूनमें परिवर्तन करनेकी पूरी आवश्यकता है। और केपके नेताओंको इस भावनासे कार्य करना चाहिए। हम मानते हैं कि यदि वहाँके नेता इंग्लैंडकी दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिको लिखेंगे तो वहाँ से भी बहुत अच्छी सहायता मिलेगी। उस समितिका काम यहाँ से पत्र गये बिना भली-भाँति नहीं हो सकता, क्योंकि यहाँकी अनुमतिपर उस समितिकी शक्ति निर्भर है। हमें आशा है कि इस सम्बन्धमें केपके भारतीय जोरदार कार्रवाई करेंगे।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-४-१९०८

१०९. केपके भारतीयोंको सूचना

'साउथ आफ्रिकन न्यूज' में केप टाउन ब्रिटिश भारतीय समितिकी बैठकका विवरण[१] प्रकाशित हुआ है। किसीने उसकी कतरन अंग्रेजीमें प्रकाशित करनेके लिए हमारे पास भेजी है। हमने निश्चय किया है कि हम उसे अंग्रेजीमें प्रकाशित नहीं करेंगे, क्योंकि हमें उसमें किसी भी प्रकार समाजका फायदा नजर नहीं आता। जहाँतक हम जानते हैं, 'इंडियन ओपिनियन' का अंग्रेजी भाग बहुत-से गोरे पढ़ते हैं। उनके मनपर इस विवरणकी कोई अच्छी छाप पड़ना सम्भव नहीं है। 'साउथ आफ्रिकन न्यूज' ने समितिको बैठकका जो विवरण प्रकाशित किया है उसके ऊपर लिखा हुआ है कि यह विवरण उनका अपना नहीं है, किसीका भेजा हुआ है, इसलिए प्रकाशित किया जा रहा है। उस विवरणमें मुख्य बात दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय संघके विरोधमें लिखी गई है। समितिका कारोबार कैसे चलता है, उसमें दोष है अथवा नहीं, इसकी हमें कोई खबर नहीं है। सम्भव है समितिमें जो बातचीत हुई वह सच हो; अथवा हो सकता है वह निराधार हो। हमारे लिखनेका इतना ही तात्पर्य है कि इस प्रकारकी बातोंके विषयमें अंग्रेजी अखबारोंमें लिखनेसे समाजका हित-साधन नहीं होता और मन निरर्थक खट्टे होते हैं। इसके सिवा उसका भारतीयोंसे ईर्ष्या रखनेवालोंके ऊपर प्रतिकूल प्रभाव होता है और उनकी ईर्ष्याको आधार मिल जाता है। यह समय भारतीय समाजके आपसमें लड़नेका बिलकुल नहीं है। किसी भी समाजका काम वास्तविक शत्रुके विरुद्ध लड़ना है। उसीमें जितना बने उतना श्रम किया जाना चाहिए।

समिति प्रवासी अधिनियमसे सम्बन्धित उपायोंपर विचार कर रही है, यह प्रशंसनीय है। उसके बारेमें जो कुछ करना योग्य हो, सो करना उसका कर्तव्य है। किन्तु ऐसा करनेके लिए प्रकट रूपसे संघ अथवा किसी और संस्थाके विरुद्ध लिखा जाये, यह मैं ठीक नहीं समझता।

हमें समितिको बैठकका विशेष गुजराती विवरण[२] मिला है। हम उसे दूसरी जगह दे रहे हैं।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-४-१९०८
 
  1. कानमके कुछ मुसलमान दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय संघकी कुछ बातोंसे असन्तुष्ट थे। १२ अप्रैलको उनकी शिकायतोंपर विचार करनेके लिए समितिने यह बैठक बुलाई थी। केपके प्रवासी अधिनियमकी हदतक संघने भाषाओंमें केवल उर्दूको मान्यता देनेकी माँग की थी। यह मदरासी, बंगाली और गुजरातियोंके प्रति अन्याय होता। समितिने इस कामके लिए चारों भाषाओंको मान्यता देनेकी सिफारिश की।
  2. यह यहाँ नहीं दिया गया है।