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१११. सर हेनरी कैम्बेल-बैनरमैन

अखबारोंमें इंग्लैंडके भूतपूर्व प्रधानमन्त्री सर हेनरी कैम्बेल-बैनरमैनके देहान्तका समाचार प्रकाशित हुआ है। कुछ ही दिन पहले खबर मिली थी कि उक्त महोदयने अपने पद से इस्तीफा दिया है। इस्तीफेका कारण उनकी बीमारी ही थी और वे उस बीमारीसे उठ नहीं सके।

सर हेनरी ग्लासगोके एक बड़े व्यापारी थे। किन्तु व्यापारके साथ उन्होंने विद्योपार्जन भी किया था। उनके मनमें देशकी सेवाका उत्साह था और इसलिए व्यापारमें ही अपना सारा समय न देकर उन्होंने राजनीतिमें भी हिस्सा लिया। हम देखते हैं कि ऐसा बहुत-से अंग्रेजोंने किया है। श्री चैम्बरलेन भी व्यापारी थे और अभीतक हैं।

सर हेनरी स्वभावसे बड़े स्नेही और मनके उदार थे। ऐसा नहीं कि उन्हें केवल अपने ही समाजसे प्रेम रहा हो; उनका मन जहाँ-जहाँ अत्याचार होता, वहाँ-वहाँ दौड़ता और उपाय करनेके लिए व्याकुल हो जाता। वे स्वयं प्रधानमन्त्रीके पदपर थे, किन्तु वे रूसकी जनताके पक्षमें और जारके विपक्षमें अपनी उत्कट भावना प्रदर्शित करनेमें पीछे नहीं रहे। वे बड़े नीतिनिष्ठ थे। जब उन्होंने बोअरोंपर नाहक ही हमला होते देखा तब उन्होंने अपने समाजका विरोध करनेमें भी आगापीछा नहीं किया। उस समय उन्होंने ब्रिटिश सिपाहियोंके समक्ष बहुत ही कड़ा भाषण किया और जब स्वयं मंत्री बने, तब तुरन्त ट्रान्सवालको स्वराज्य सौंप दिया।

जब अधिनियमसे सम्बन्धित संघर्षके बारेमें भारतीय शिष्टमण्डल विलायत गया, तब उन्होंने अपनी सहानुभूतिका अच्छा परिचय दिया। कहा जाता है कि लॉर्ड एलगिनपर प्रभाव डालनेमें उन्होंने बहुत हाथ बँटाया।[१]

सर हेनरी ७२ वर्षके हो रहे थे। इतनी अधिक उम्रके बावजूद उनका शरीर और मन दुर्बल नहीं हुआ था। इतनी वृद्धावस्थामें भी राज्यका कारोबार चलाना और देशकी सेवा करना वे ठीक समझते थे। इस बात से हम लोगोंको शिक्षा लेनी चाहिए। भारतीय समाजके लोग एक तो इतने दीर्घायु हो नहीं पाते, और यदि हो भी पाते हैं तो पूरा समय देश-सेवामें नहीं लगाते। हम ४० वर्षकी उम्रमें ही शिथिल हो जाते हैं और यदि इस अवधिमें कुछ काम कर लिया तो गंगा नहाये ऐसा समझकर मिथ्याभिमानमें पड़कर शेष समय, अगर पैसा बचाया हो तो उसके बलपर, ऐश-आराममें गुजार देते हैं। ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिल सकते हैं; और तिसपर भी हम कई बार नाराजी जाहिर करते हैं कि हमें स्वराज्य नहीं मिलता। यदि भारतमें सैकड़ों सर हेनरी पैदा हो जायें तो भारत अविलम्ब स्वतन्त्र हो जाये क्योंकि तब उसके राजभवनपर कौन-सा झंडा फहराता है, इसकी चिन्ता नहीं रहेगी।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-४-१९०८
 
  1. देखिए खण्ड ६, पृष्ठ २७३।