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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समाजके लोग सभ्य वर्गके हैं। भारतीय और अन्य धन्धे करनेवाले भारतीयोंकी बड़ी संख्याको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारतीय समाजको बस्तियोंमें खदेड़नेके कारण उनकी परेशानी और बढ़ जायेगी, क्योंकि इस वर्ग के लोग न बाजार, बस्ती अथवा बाड़ोंमें रह सकते हैं और न व्यापार कर सकते हैं।

मेरी समिति सरकारको इस बातका भी विशेष स्मरण दिलाती है कि ट्रान्सवालमें रहनेवाले भारतीय समाजमें से अधिकांश खानोंकी सीमामें रहनेवाले हैं। इसलिए मेरी समितिको पूरा विश्वास है कि प्रस्तुत मसविदेमें रखी गई धाराओंको सरकार वापस ले लेगी अथवा उसमें ऐसा संशोधन करेगी जिनसे ट्रान्सवालमें रहनेवाली भारतीय कौमको योग्य राहत मिल सके।

स्वेच्छया [पंजीयन] क्या है?

आजकल स्वेच्छया और अनिवार्यको दुविधा कुछ भारतीयोंके मनमें चलती रहती है। इसमें अनुमतिपत्र कार्यालयका भी थोड़ा हाथ है। एक संवाददाता कहता है कि कर्मचारी १८[१] अँगुलियाँ जबरदस्ती माँगते हैं। मेरी सलाह तो सबको यही है कि देनी चाहिए, क्योंकि स्वेच्छापूर्वक होनेके कारण मैं उसमें कोई बुराई नहीं मानता। किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि जो बुराई मानते हों वे भी दें। वैसे लोग अभी भी 'ना' कह सकते हैं। जब अनिवार्य था, तब ऐसे लोगोंपर बाकायदा मामला चलाया जा सकता था। अब स्वेच्छापूर्वक है; यदि अमलदार अर्जी लेना मंजूर न करे, तो उसकी चिन्ता करनेकी आवश्यकता नहीं है। जिन्हें १० अँगुलियोंपर आपत्ति है, वे देनेके लिए वचनबद्ध नहीं हैं। कर्मचारी जो कहें, उसपर ध्यान देना आवश्यक नहीं है। स्वेच्छया प्रार्थनापत्र देना हमारा फर्ज है। किन्तु यदि वह फर्ज पूरा करते समय आपत्ति उठाई जाये, तो फिर कानून हमपर लागू नहीं होता। कानून पहले लागू हो सकता था। फिलहाल तो जिनके तथ्य झूठे हैं अथवा जिनका अनुमतिपत्र झूठा है, डर उन्हें है; और वह डर भी अनुमतिपत्र न मिलनेका है, उनपर मामला चलनेका नहीं। सबसे अच्छा उपाय यह है कि जिन्हें दस अँगुलियोंके बारेमें आपत्ति हो वे व्यक्ति दस अँगुलियाँ न दें और संघके मन्त्रीको लिख दें और स्वयं उस सम्बन्धमें निर्भय रहें। डरके मारे बादमें १० अँगुलियोंकी छाप देने न चले जायें। सत्याग्रहकी लड़ाईमें अन्तमें वही जीतता है जो बकरा न बनकर सिंह बनता है।

रूडीपूर्टका व्यापार-संघ

रूडीपूरटके व्यापार-संघका विचार है कि भारतीयोंकी जमीन गोरोंके नामपर हो जाती है, यह ठीक नहीं है। भारतीयोंकी बस्तियोंमें भेज देना चाहिए और उन्हें परवाने देने, न देनेकी सत्ता नगरपालिकाको सौंप दी जानी चाहिए। संघने श्री स्मट्सको इस अभिप्रायका लम्बा पत्र लिखा है। ऐसा कोई गोरा दक्षिण आफ्रिकामें नहीं है जो भारतीयोंको सुखकी नींद सोने दे। उन्होंने निश्चय कर लिया है कि वे हमें जाग्रत रखेंगे। मैं इसे बड़ी अच्छी तालीम मानता हूँ। जो मनुष्य अपने शत्रुसे घबराता नहीं है और उसपर गुस्सा नहीं करता, उसके लिए शत्रु भी मित्र ही समझिए, क्योंकि शत्रु उसे सावधान रखकर मित्रका काम ही करता है। हम

 
  1. दायें हाथके पाँच और बायें हाथके पाँच निशान अलग-अलग एवं दायें और बायें हाथोंकी केवल अँगुलियोंके आठ निशान एक साथ। देखिए खण्ड ७, पृष्ठ ४९४, अनुसूची ख।