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नेटालके परवाने

कहता हूँ कि प्रभुका आदेश मुझे अत्यन्त प्यारा है और इसमें ही इस नगरका महान् हित निहित है।[१] मेरा धन्धा एक ही है। मैं छोटे-बड़े सभीको एक ही बात समझाता रहता हूँ। और वह यह है: प्राणोंकी और धनकी चिन्ता कम करो; आत्माकी सँभाल अच्छी तरह करो। उसका उत्थान जिन उपायोंसे हो उन उपायोंका प्रयोग करो। सद्गुणोंका जन्म सम्पत्तिसे नहीं होता, किन्तु सद्गुण होंगे तो सम्पत्ति और अन्य सांसारिक वस्तुएँ अवश्य उपलब्ध हो जायेंगी। यदि कोई कहे कि मैं यह शिक्षा देकर इस नगरके लोगोंको बिगाड़ता हूँ तो इसका यह अर्थ हुआ कि सद्गुण दुर्गुण हैं। यदि कोई व्यक्ति कहे कि मैं इसके अतिरिक्त कोई अन्य बात कहता हूँ तो वह व्यक्ति आपको गुमराह करता है।"

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-४-१९०८

११४. नेटालके परवाने

नेटाल परवाना कानूनके सम्बन्धमें भारतीय व्यापारियोंमें चर्चा चल रही है। सबका यही कहना है कि कुछ-न-कुछ करना चाहिए। सभी मानते हैं कि यदि कोई कारगर उपाय न किया गया तो भारतीय व्यापारीके पाँव नेटालसे उखड़ जायेंगे। गोरे भारतीयोंके पीछे पड़ गये हैं और धीरे-धीरे उनको जड़ से उखाड़ देना चाहते हैं।

सभी भारतीय इसे समझते हैं। समझनेकी आवश्यकता भी है। किन्तु उपाय खोज निकालना अधिक कठिन है। हमें तो एक ही उपाय सूझ पड़ता है। भारतीय समाजपर आनेवाले दुःखोंका मुख्य कारण यह है कि इस समाजकी प्रतिष्ठा घट गई है। इसे अपनी वीरता प्रकट करनी चाहिए। तभी सरकार उसको गिनेगी। तब किया क्या जाये? दो उपाय हैं। एक तो यह है कि तलवारसे लड़ें। हमारी इस्पातकी तलवार जंग खा गई है। हम चाहते हैं कि उसमें सदा जंग लगा रहे, क्योंकि तलवारसे ली हुई चीज तलवारसे ही टिकती है।[२] दूसरा उपाय यह है कि सत्याग्रह रूपी तलवारसे लड़ें। यह तलवार कभी जंग नहीं खाती। इसे तेज करनेके लिए पत्थरको सान नहीं चाहिए। वह तो मनकी सानपर चढ़ाई जाती है और उसीसे चमकती है। बाहरी अग्निमें तपाकर उसपर पानी नहीं चढ़ाया जाता। सत्याग्रहकी तलवारको सत्यरूपी अग्नि में डालकर उसपर पानी चढ़ाया जाता है। उसका पानी ऐसा होता है कि कभी उतरता नहीं। उसको जितना काममें लें वह उतनी ही तेज होती है। हम ऐसी तलवारसे लड़ें, यह सच्चा और दूसरा उपाय है।

इस उपायका प्रयोग कैसे किया जाये? यह बहुत सुगम है। एक सच्चे व्यापारीको अन्यायपूर्वक परवाना न दिया जाये तो उसके पीछे सब लोग परवाने लेनेसे इनकार कर दें और अपना यह निर्णय सरकारको छतपरसे पुकार-पुकार कर बता दें। व्यापारियोंको यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि "साथ तरेंगे, साथ डूबेंगे।"

 
  1. इसके एक अंग्रेजी अनुवादका अर्थ इस प्रकार है: "और मेरा खयाल है, मेरी ईश्वर-सेवासे बड़ा सौभाग्य एथेंसवासियोंको कभी प्राप्त नहीं हुआ"।
  2. यही विचार "सत्याग्रहका भेद", पृष्ठ ८८-८९ में अधिक विस्तारसे व्यक्त किया गया है।