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एक सत्यवीरकी कथा-[५]

आपकी हित-चिन्ता करता हूँ, मैं पिता या बड़े भाईकी भाँति आपमें से प्रत्येक व्यक्तिको शिक्षा देता हूँ और सन्मार्ग दिखानेका प्रयत्न करता हूँ। मैंने यदि इसका प्रतिफल माँगा होता और उससे बहुत-बड़ी सम्पत्ति संचित कर ली होती तो मुझपर आपका सन्देह करना सकारण होता; किन्तु मेरे वादियोंने मुझपर धन लेने का आरोप नहीं लगाया है। मैंने कभी धन लिया या माँगा नहीं है, मेरी जबरदस्त गरीबी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

"कदाचित् आप यह पूछेंगे कि जहाँ मैं लोगोंको गुणी बननेकी सम्मति देता रहता हूँ और उसके लिए घर-घर भटकता फिरता हूँ, वहाँ मैं नगरका हित-साधन करनेके लिए राजनीतिक कार्यों में भाग क्यों नहीं लेता। मैं इसका कारण बहुत बार बता चुका हूँ। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे कानोंमें सदा दिव्य-वाणी सुनाई देती रहती है। यह वाणी मुझे निर्देश देती है कि मैं राजनीतिक कार्योंमें न पड़ूँ। मेरी भी यही मान्यता है कि जो-कुछ हुआ है, वह ठीक हो हुआ है। यदि मैं राजनीतिक झगड़ोंमें पड़ा होता तो मैं संकटमें फँस गया होता; उससे आपको या मुझे लाभ न होता। मैं जो सत्य है वही कहता हूँ; इससे आप रुष्ट न हों। जो व्यक्ति नगरमें होनेवाली अन्धाधुन्धीका विरोध करें और अन्यायपूर्ण कामोंकी राहमें विघ्न डाले, उसका जीवन सुरक्षित नहीं है। इसलिए जो व्यक्ति यह चाहता है कि सब-कुछ न्यायानुसार ही हो, उसको इस झंझटमें नहीं फँसना चाहिए।

"मैं आपको इस बातका प्रमाण दूँगा। उससे आप देखेंगे कि मैं जिस बातको अनुचित मानूँगा उसको मौतके डरसे भी नहीं करूँगा। किन्तु आप मेरे उदाहरणसे यह भी देखेंगे कि यदि मैं राजनीतिक झगड़ोंमें फँसा रहता तो कभीका नष्ट हो गया होता। मैं जो-कुछ कहनेवाला हूँ वह आपको बुरा लगेगा। किन्तु वह सत्य है। एक बार मैं आपकी सभाका सदस्य था।[१] उस समय सभाने दस सरदारोंको मृत्यु-दण्ड देनेका निर्णय किया। समस्त सदस्योंमें[२] से केवल मैंने उस निर्णयका विरोध किया। उस समय सभी मुझे मार डालनेके लिए तैयार हो गये। किन्तु मैं अपनी टेकपर दृढ़ रहा। मुझे लगा कि आपके अन्यायपूर्ण कार्योंमें सम्मिलित होनेसे मेरा मर जाना या कैद भोगना अच्छा है। यह बात उस समयकी है जब हमारे यहाँ जनतन्त्र था।

"फिर जब जनतन्त्र स्थानमें कुलीन तन्त्र आ गया तब लीसन[३] नामके व्यक्तिको मृत्यु दण्ड दिया गया और उसे कार्यरूप देनेके लिए उसको पकड़कर लानेकी आज्ञा दी गई। मुझे भी वह आज्ञा मिली। मैं जानता था कि लीसनको दिया गया मृत्यु दण्ड अनुचित हैं[४]; उसे पकड़ने न जानेमें मेरी मृत्युकी सम्भावना थी। मैंने अपनी मृत्युकी परवाह नहीं की; मैं लीसनको पकड़ने नहीं गया। और इस बीच यदि वह राज्य-व्यवस्था भंग न हो गई होती[५] तो मेरी मृत्यु निश्चित थी।

"अब आप देख सकते हैं कि यदि मैं शासनिक कार्योंमें दीर्घकाल तक रहा होता और न्यायबुद्धिपर आरूढ़ रहता (और न्याय मेरा जीवनाधार होनेके कारण अन्यथा मुझसे होता

 
  1. सुकरात "तीस सदस्यीय आयोग" के एक सदस्य थे।
  2. एक अंग्रेजी अनुवादमें 'अध्यक्षों' शब्द हैं।
  3. एक अंग्रेजी अनुवादमें यहाँ "लिअन" है।
  4. इसी घटना के साथ प्लेटोकी भ्रम-निवृत्ति प्रारम्भ हुई। घटनाकी चर्चा उसने अपने "सातवें चिट्टे" में की है।
  5. यहाँ एथेंसमें कुछ अल्पतान्त्रिक सरकारोंके बाद जनतान्त्रिक व्यवस्थाकी पुनः स्थापनाकी ओर संकेत है।